नूतन नवभारत को करते, नवस्वर से गुंजित वसुधा के ;
नवल वर्ष में, नवल विचारों; का प्रतिक्षण जयघोष सुनो।
सप्त जलधि के महाद्वीप के, शासक ताज संवार रहे।
नवनभ के नवपथ के स्वामी, भारत का जयगीत बुनो।।१।।
नन्ही-सी मुस्कान बिखरकर, ऐसे अधरों पर आई ;
पुष्प ओट में बाट जोहती, जैसे तितली शर्माई ।
प्रातःकाल की रवि की आभा, मुख-मण्डल पर है छाई ;
मरुभूमि को गुलशन करने ; प्रकृति फूलों संग आई।।२।।
उल्लासित है हृदय आज फिर, नवरस का संचार हुआ है,
न जाने कितने कण से इस; टीले का निर्माण हुआ है।
प्रहरी प्राचीरों के बनकर, मिल-जुलकर अब काम करें।
फिर प्रसून अपने उपवन के ; विश्व चमन गुलजार करें।।३।।
नव मंजिल, नव पथ के साथी; नवल विचारों के कुंभ बने।
नूतन और पुरातन का संगम, संस्कृतियों का स्तंभ बने।
विजयी विश्व तिरंगा हो प्यारा , सदा शीर्ष पर लहराये।
ऐसा हो नववर्ष हमारा , हर रंग में खुशियाँ लाए।।४।।
रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा "गिरिजाशंकर"
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
Copy right © 2019
All rights reserved.
नवल वर्ष में, नवल विचारों; का प्रतिक्षण जयघोष सुनो।
सप्त जलधि के महाद्वीप के, शासक ताज संवार रहे।
नवनभ के नवपथ के स्वामी, भारत का जयगीत बुनो।।१।।
नन्ही-सी मुस्कान बिखरकर, ऐसे अधरों पर आई ;
पुष्प ओट में बाट जोहती, जैसे तितली शर्माई ।
प्रातःकाल की रवि की आभा, मुख-मण्डल पर है छाई ;
मरुभूमि को गुलशन करने ; प्रकृति फूलों संग आई।।२।।
उल्लासित है हृदय आज फिर, नवरस का संचार हुआ है,
न जाने कितने कण से इस; टीले का निर्माण हुआ है।
प्रहरी प्राचीरों के बनकर, मिल-जुलकर अब काम करें।
फिर प्रसून अपने उपवन के ; विश्व चमन गुलजार करें।।३।।
नव मंजिल, नव पथ के साथी; नवल विचारों के कुंभ बने।
नूतन और पुरातन का संगम, संस्कृतियों का स्तंभ बने।
विजयी विश्व तिरंगा हो प्यारा , सदा शीर्ष पर लहराये।
ऐसा हो नववर्ष हमारा , हर रंग में खुशियाँ लाए।।४।।
रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा "गिरिजाशंकर"
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
Copy right © 2019
All rights reserved.