कुछ पाना , कुछ खोना ;
कुछ हँसकर , फिर से रोना ।
कुछ उम्मीदें , कुछ आशा ;
फिर इस पागल मन की निराशा।
लिखकर ; फिर उसे मिटाना,
कुछ खुद को फिर समझाना।
इस बेचैनी से सब अनजान हैं।
क्या सब कुछ इतना आसान है ??? ।।१।।
कुछ चूड़ी , कुछ कंगन ;
कुछ धागे , कुछ बंधन ;
पलकों पर खुद बिठा लेना ।
उन छोटी-छोटी आँखों में,
सपनों की झील बना देना ।
एक याद बनाकर खुशियों की,
झटके से उसे भुलाना ।
इस बेचैनी से सब अनजान हैं।
क्या सब कुछ इतना आसान है ??? ।।२।।
एक चन्दा, और कुछ तारें ;
और कल-कल करता झरना।
कुछ दिन ढ़लने से पहले , बदली से ;
सूरज का वो छिपना ।
उस साँझ के धीरे-धीरे जाने की ;
बेचैनी से सब अनजान हैं।
क्या सब कुछ इतना आसान है ??? ।।३।।
रचनाकार: निखिल वर्मा
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