Friday, October 13, 2023

क्या सब कुछ इतना आसान है ?

कुछ पाना , कुछ खोना ;

कुछ हँसकर , फिर से रोना ।

कुछ उम्मीदें , कुछ आशा ;

फिर इस पागल मन की निराशा।

लिखकर ; फिर  उसे मिटाना,

कुछ खुद को फिर समझाना।

इस बेचैनी से सब अनजान हैं।

क्या सब कुछ इतना आसान है ??? ।।१।।


कुछ चूड़ी , कुछ कंगन ;

कुछ धागे , कुछ बंधन ;

पलकों पर खुद बिठा लेना । 

उन छोटी-छोटी आँखों में,

सपनों की झील बना देना ।

एक याद बनाकर खुशियों की,

झटके  से उसे भुलाना ।

इस बेचैनी से सब अनजान हैं।

क्या सब कुछ इतना आसान है ??? ।।२।।


एक चन्दा‌, और कुछ तारें‌ ;

और कल-कल करता झरना।

कुछ दिन ढ़लने से पहले , बदली से ; 

सूरज का वो छिपना ।  

उस साँझ के धीरे-धीरे जाने की ;

बेचैनी से सब अनजान हैं।

क्या सब कुछ इतना आसान है ??? ।।३।।


रचनाकार: निखिल वर्मा

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Saturday, October 7, 2023

नन्ही सी कली मेरी लाडली...!

अपना बरमदा, अपना आँगन, 

चिड़िया बनकर, यहाँ फुदकना ।

नन्ही-सी कली अपनी बगिया की, 

गुलशन‌ में खिलकर सदा महकना ।।१।।


सागर सा गहरा मन है,

कोई थाह तुम्हारी न पाया ।

पर्वत सा अविचल तूफानों में,

तुमसा कोई नहीं पाया ।।२।।


हम सबकी तुम शक्ति बनकर,

अपने घर में आई हो।

मेरी आधी दुनिया हो तुम, 

" माँ‌ -पापा " की‌ परछाईं हो ।।३।।


तुम जीत चाहती हो जैसी , वो जीत तुम्हारी निश्चित है।

बहुत‌ निकट हो मंज़िल के , बस कुछ क़दमों की दूरी है।

शक्ति तुम्हारी सूरज जैसी , सामर्थ्य गगन से बढ़कर है।

बस एक ऊँची छलाँग है बाकी, फिर सारी दुनिया तेरी है ।।४।।


मेरी कहानी की " सिंड्रेला ", 

जब भी तुम मुझसे रूठी हो,

मेरा पूरा ध्यान समेटे, 

तुम छोटी सी मेरी बेटी हो ।।५।।


रचनाकार: निखिल वर्मा

कार्यरत: भारत मौसम विज्ञान विभाग, 

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार।

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