भेदभाव के पाश तोड़कर, कर्मान्जलि का दीप जलाकर,
नर से नारी, नारी से नर तक, समानता फैलाती है।
बुद्धि, हृदय व तन की शिक्षा, जो मानवता सिखलाती है।
श्रम से पुष्ट महात्मा की वह; "तालीम नई" कहलाती है।।१।।
मातृभाषा में ज्ञान प्रसारे, छात्रों का व्यक्तित्व निखारे।
स्वपोषित हो हस्तशिल्प से, व्यावसायिक बन जाती है।
ग्रामोदय में भारतोदय का, जो प्रतिबिंबन कर जाती है।
श्रम से पुष्ट महात्मा की वह; "तालीम नई" कहलाती है।।२।।
स्वच्छता के मूल मंत्र में, ईश्वर का निवास बताकर।
स्वस्थ युवाओं के दल-बल से, नवभारत निर्माण करे।
तन से, मन से, आत्मा में, जो रंग नए भर जाती है।
श्रम से पुष्ट महात्मा की वह; "तालीम नई" कहलाती है।।३।।
रचनाकार- निखिल वर्मा "गिरिजाशंकर "
अध्ययनरत- लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
© Copyright 2018
All rights reserved.
नर से नारी, नारी से नर तक, समानता फैलाती है।
बुद्धि, हृदय व तन की शिक्षा, जो मानवता सिखलाती है।
श्रम से पुष्ट महात्मा की वह; "तालीम नई" कहलाती है।।१।।
मातृभाषा में ज्ञान प्रसारे, छात्रों का व्यक्तित्व निखारे।
स्वपोषित हो हस्तशिल्प से, व्यावसायिक बन जाती है।
ग्रामोदय में भारतोदय का, जो प्रतिबिंबन कर जाती है।
श्रम से पुष्ट महात्मा की वह; "तालीम नई" कहलाती है।।२।।
स्वच्छता के मूल मंत्र में, ईश्वर का निवास बताकर।
स्वस्थ युवाओं के दल-बल से, नवभारत निर्माण करे।
तन से, मन से, आत्मा में, जो रंग नए भर जाती है।
श्रम से पुष्ट महात्मा की वह; "तालीम नई" कहलाती है।।३।।
रचनाकार- निखिल वर्मा "गिरिजाशंकर "
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