मिथ्या और सत्य के , जो युद्ध में भी मौन है ।
साधकों तुम ही बताओ , वो किस तरफ ; वो कौन है ?
आँधियों के बीच , मैं खड़ा था , लड़ रहा ;
हर दिशा से आ रहे , वार सारे सह रहा ।
पर अब उजाले से , अँधेरे की तरफ ; बढ़ रहा हूँ मैं।
हाँ , बदल रहा हूँ मैं ।। १।।
मन को मेरे , काटती है ; रूढ़िवादी धार जो ।
रिक्तियाँ न भर सकें , शब्दों की उस कतार को ।
कोशिशें करते सदा ; मैं राहें जोड़ता रहा ।
पर्वतों सा , था अडिग ; न टूटता , न गिर रहा ।
पर अब उजाले से , अँधेरे की तरफ ; बढ़ रहा हूँ मैं।
हाँ , बदल रहा हूँ मैं ।। २।।
मैं अकिंचन क्या बनूँगा , वो मनुज ; जो पूर्ण हो ।
इसलिए मेरा विखंडन , खण्ड-खण्ड चूर्ण हो ।
ज्ञान का भण्डार ; जो पोथियों में सिमट रहा ;
बिखरे हुए उन मोतियों को , मैं खड़ा था बिन रहा ।
पर अब उजाले से , अँधेरे की तरफ ; बढ़ रहा हूँ मैं।
हाँ , बदल रहा हूँ मैं ।।३।।
रचनाकार: निखिल वर्मा
कार्यरत: भारत मौसम विज्ञान विभाग,
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार।
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