"शीश झुकाकर जो मेरी, माँ के चरणों में आएगा,
वो विष का प्याला भी मुझको, अमृत बनकर हर्षाएगा।
क्षमायाचना कर जो भी, सम्मान उसे दे पाएगा,
कलियुग का वो साधारण मानव;भगवान मेरा बन जाएगा।।१।।
शांति चाहने को आतुर, हे महाप्रतापी! सुन लो सब;
ख़ता निरंतर करने पर, दिन वह भी आएगा जब,
मधुरस बरसाने वाला बादल, प्रलय विकट फिर लाएगा।
जननी-जन्मभूमि के खातिर, यह 'बुद्ध' समर में आएगा।।२।।"
रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा "गिरिजा शंकर"
अध्ययनरत- लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
Copy right © 2019
All rights reserved.
वो विष का प्याला भी मुझको, अमृत बनकर हर्षाएगा।
क्षमायाचना कर जो भी, सम्मान उसे दे पाएगा,
कलियुग का वो साधारण मानव;भगवान मेरा बन जाएगा।।१।।
शांति चाहने को आतुर, हे महाप्रतापी! सुन लो सब;
ख़ता निरंतर करने पर, दिन वह भी आएगा जब,
मधुरस बरसाने वाला बादल, प्रलय विकट फिर लाएगा।
जननी-जन्मभूमि के खातिर, यह 'बुद्ध' समर में आएगा।।२।।"
रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा "गिरिजा शंकर"
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