Friday, March 29, 2019

सम्मान

"शीश झुकाकर जो मेरी, माँ के चरणों में आएगा,
वो विष का प्याला भी मुझको, अमृत बनकर हर्षाएगा।
क्षमायाचना कर जो भी, सम्मान उसे दे पाएगा,
कलियुग का वो साधारण मानव;भगवान मेरा बन जाएगा।।१।।

शांति चाहने को आतुर, हे महाप्रतापी! सुन लो सब;
ख़ता निरंतर करने पर, दिन वह भी आएगा जब,
मधुरस बरसाने वाला बादल,‌‌ प्रलय विकट फिर लाएगा।
जननी-जन्मभूमि के खातिर, यह 'बुद्ध' समर में आएगा।।२।।"

रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा "गिरिजा शंकर"
अध्ययनरत- लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
Copy right © 2019
All rights reserved.

Sunday, March 17, 2019

विरह

"कहाँ गया वो मेरा बचपन,
कहाँ गई वह किलकारी?
कहाँ गई वो रंग की डिबिया,
कहाँ गई वो पिचकारी?

कहाँ मिटाऊँ हिय की तड़पन,
कहाँ लिखूं विरह की सरगम?
कहाँ छिपाऊँगा नयनों में,
बहती धाराओं का संगम?

कहाँ मिलेगा ऐसा जीवन,
हर दिन सरस और मनभावन,
कहाँ ढूंढ कर हृदय भाव को,
बाटूँगा मैं किससे हरदम?

कहाँ उड़ गए कोरे पन्ने ?
कहाँ गई वो सब स्याही?
कहाँ उड़ गए जल के बादल?
कहाँ गया भीगा‌ आँगन?"

रचनाकार निखिल देवी शंकर वर्मा
अध्ययनरत लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
© Copy right 2019
All rights reserved.