"क्या विचार लेगा व्योम अब, फिर से अँधियारा होगा।
क्या सूरज उगने से पहले, यह अंबर काला होगा।
होंगी अनेक विकट मजबूरियाँ, फिर भी कदम उठाना होगा।
दस्तक दरवाज़े पर देकर, फिर तुमको आना होगा।।
सृष्टि सृजन का भाव, तुम्हारे कदमों में निरन्तर है।
संघर्षों की पीड़ा व घायल मन में, थोड़ा सा अंतर है।
एक ऊँची छलाँग के खातिर, कुछ गज़ पीछे जाना होगा।
दस्तक दरवाज़े पर देकर फिर तुमको आना होगा।।
पाँवों में छालें पड़ जाएँ, आ जाएं कितनी बाधाएं।
भेद हृदय को घायल करती, गर्जन करती घोर घटाएँ।
फिर गुलाब सी सुवास लेकर, निर्जन वन महकाना होगा।
दस्तक दरवाज़े पर देकर फिर तुमको आना होगा।।
अभिमन्यु हो महावीर तुम, शत्रु को झुक जाना होगा।
कालचक्र के चक्रव्यूह को भेद तुम्हें आना होगा।
विधि की लिखी कहानी में, पात्रों को स्वयं बनाना होगा।
दस्तक दरवाज़े पर देकर, फिर तुमको आना होगा।।
रचनाकार- निखिल वर्मा "गिरिजा शंकर"
Copyright © 2019
All rights reserved.
क्या सूरज उगने से पहले, यह अंबर काला होगा।
होंगी अनेक विकट मजबूरियाँ, फिर भी कदम उठाना होगा।
दस्तक दरवाज़े पर देकर, फिर तुमको आना होगा।।
सृष्टि सृजन का भाव, तुम्हारे कदमों में निरन्तर है।
संघर्षों की पीड़ा व घायल मन में, थोड़ा सा अंतर है।
एक ऊँची छलाँग के खातिर, कुछ गज़ पीछे जाना होगा।
दस्तक दरवाज़े पर देकर फिर तुमको आना होगा।।
पाँवों में छालें पड़ जाएँ, आ जाएं कितनी बाधाएं।
भेद हृदय को घायल करती, गर्जन करती घोर घटाएँ।
फिर गुलाब सी सुवास लेकर, निर्जन वन महकाना होगा।
दस्तक दरवाज़े पर देकर फिर तुमको आना होगा।।
अभिमन्यु हो महावीर तुम, शत्रु को झुक जाना होगा।
कालचक्र के चक्रव्यूह को भेद तुम्हें आना होगा।
विधि की लिखी कहानी में, पात्रों को स्वयं बनाना होगा।
दस्तक दरवाज़े पर देकर, फिर तुमको आना होगा।।
रचनाकार- निखिल वर्मा "गिरिजा शंकर"
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