ज़मीं को मैं ज़मीं कह रहा हूंँ आज से,
कदम दर कदम चल रहा हूंँ नाप के।
जिन पंक्तियों को रच रहा था पल-पल सोचकर ,
उस कलम को रख रहा अब मैं आज से ।।
ज़मीं को मैं ज़मीं कह रहा हूंँ आज से,
कदम दर कदम चल रहा हूंँ नाप के।
जिन पंक्तियों को रच रहा था पल-पल सोचकर ,
उस कलम को रख रहा अब मैं आज से ।।
जब कुछ भी समझ न आए ;
और रोने को दिल चाहे।
जब अंतर्मन की बांह कचोटे,
मन अपना घबराए ।। १।।
जब भंवर उठे सागर सी,
और साँसें उखड़ी जाएं।
उठती हुई निनादों में,
जब स्वर अपना खो जाए ।।२।।
जब बेचैनी व उलझन हो,
और दुविधा में पड़ जाएं।
शस्त्र विहीन भले हों, पर;
लड़ने को जी चाहे।।३।।
अंतर को अपने, मौन रखो तब ;
पर्वत-सा अविचल होकर ।
कलम उठाकर रच दो खुद को,
फिर से दृढ़ प्रतिज्ञा लेकर।।४।।
उठो, चलो और कदम बढ़ाओ,
अपनी राहें स्वयं बना लो।
समरक्षेत्र को जाने वाले ,
हर पथ को तुम, फिर से अपना लो ।।४।।
रचनाकार -निखिल वर्मा
कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग
Copyright ©️ 2024
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किसी दरिया के पानी को भी, मैं आग लिखता हूँ।
कलम की कुछ खता तो है, मगर जज़्बात लिखता हूँ।
थोड़ा-बहुत तो ठीक है पर , मैं बेहिसाब लिखता हूँ।
तुम इश्क कहते हो जिसे, मैं इंकलाब लिखता हूँ।।
परिचय कराते आपसे, एक व्यक्तित्व जो है बेमिसाल।
सरल भाषा; में सहजता से समझाते; विज्ञान के जो हैं कमाल ।
बहुमुखी प्रतिभा धनी, हर क्षेत्र में उनकी मिसाल।
सौम्य, शील व मधुर जो हैं ; वो हमारे डॉ नौटियाल।।१।।
ज्ञान उनको खोजता है, खुद का कुछ भंडार भरकर ।
छाँटता फिर धुंध भ्रम की, कालिमा को दूर करता।
देखता दीपक उधर है जब, कुछ नया प्रकाश लेकर ।
चीरता है तमस को, और नया उजियार करता ।।२।।
संगीत से है प्रेम उनका, कला के वो श्रेष्ठ ज्ञाता।
प्रकृति से है नेह उनका, पुष्प से वो मुस्कुराते।
रत्न हैं नायाब वो एक , हर तरफ बिखरी, उनकी रोशनी है।
हम साथ के पत्थर हैं, थोड़ी चमक ले टिमटिमाते।।३।।
माँ शारदे की अनुपम कृपा; उन पर बरसती है सदा ।
हम तो उनके ज्ञान का, एक अंश पाकर खुश हुए।
जो मिले हमको कभी , सानिध्य थोड़ा आपका,
कुछ बड़ा हम भी करें, और नाम कर दें आपका ।।४।।
रचनाकार -निखिल वर्मा
कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग,
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार।
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