माँगता हूँ हे प्रभु तुमसे वही,
सामर्थ्य देना मुझको गर हो सके।
बाँट लूं हिस्से का अपना वो भोजन।
रात को ताकि; कोई न भूखा सो सके।।
मैं निकलकर महलों की जगमगाहट से,
छानता फिरता झुग्गियों की सुगबुगाहट में।
देखकर खाली कटोरी थाल पर,
रख दूँ अपनी रोटी उसकी दाल पर ।।
रचनाकार -निखिल वर्मा
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