Monday, August 28, 2023

शोर क्यों सुनाई दे.....?

सिसक रही है रूह जो, रो रही विचार कर ।

विरोध में तुम्हारे जो, उठ रहे असंख्य स्वर।

दमकती दामिनी के बीच, मेघों की ये गर्जना।

उजड़ चुके बगान में, बसंत कोरी कल्पना।

इन्हीं मुसीबतों के बीच, चोट क्यों दिखाई दे।

तुम्हारी हार का ये जो, शोर क्यों सुनाई दे ।।१।।


बरसते बादलों से जो, टपक रही है बूँद वो,

हटा रही शनै-शनै, सामने से धुंध वो।

असंख्य पक्षी नित्य ही, विचर रहे चमन चमन।

कतर दिए जो पंख, फिर भी उड़ रहे गगन मगन।

रत्न के समुद्र में, विष भी क्यों दिखाई दे।

तुम्हारी हार का ये जो, शोर क्यों सुनाई दे ।।२।।


रात्रि की विश्रांति में, अखंड अतुल्य शांति में,

गूंजती है फिर भी, मूक ही सी एक ध्वनि।

हिल रहे न पात एक, पवन चले भले सरर।

कहीं कोई न हो मगर, रहा न फिर भी मन ठहर ।

बिना किसी पुकार के, कोई भी क्यों दिखाई दे ?

तुम्हारी हार का ये जो, शोर क्यों सुनाई दे ।।३।।


पर्वतों से लौटती, दर्द की वो प्रतिध्वनि,

तुम्हें पुकारने सदा, वसुंधरा स्वयं खड़ी ।

सूखते दरख़्तों में, ये पक्षियों के नीड़ क्यों?

शुष्क पुष्प बाग में ,ये तितलियों की भीड़ क्यों?

पतझड़ों के काल में, भले प्रसून न दिखाई दें ।

तुम्हारी हार का ये जो, शोर न सुनाई दे ।।४।।


रचनाकार- निखिल वर्मा

कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार।

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Saturday, August 19, 2023

संदेश

" कुछ कहना था........., कुछ सुनना था..........!

कुछ तुम बोले, कुछ हम बोले ।

अधर तुम्हारे आतुरता ; में भी आकर, कुछ मंद रहे।

कहते-कहते, रुकते थे;  हाँ,  काफी कुछ हम भी मौन रहे ।।१।।


फिर भी शब्दों की गरिमा में,

लिखता हूँ, जो कुछ मन में है।

खुशियाँ कुछ होंगी, कई कष्ट रहेंगे, 

सब-कुछ होगा; भावी जीवन में ।।२।।


संघर्ष बहुत है;  है लम्बा भी, 

फिर भी चलना है, लड़ना है।

हमें हिमालय के दुर्गम शिखरों पर,

मिलकर अधिरोहण करना है ।।३।।


एक तेरी कहानी के पन्ने,

एक मेरी कथा के कुछ किस्से।

जुड़कर जो मिले, मैं  हर्षाया। 

परिवार मेरा नव बन पाया ।।४।।


कुछ प्रश्न हमारे हैं बाकी,

कुछ प्रश्न तुम्हारे भी होंगे ।

हम कुछ तुमसे मिलकर हल कर लेंगे,

कुछ तुम हमसे मिलकर सुलझाना ।।५।।


गीत मेरे न इजाज़त दे सकते हैं ;

चाँद-सितारे लाने की।

फिर भी तेरे-मेरे सपनों के पंखों को,

सक्षम हूँ, अपनी उड़ान दे पाने की ।।६।।


अब यदि आदेश तुम्हारा हो,

प्रस्थान करूँ, मैं उसी ओज से ।

कर्मक्षेत्र में रख आए,

शस्त्रों में भर लूँ, धार तेज से ।।७।।"


रचनाकार: निखिल वर्मा

कार्यरत: भारत मौसम विज्ञान विभाग।

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