ऐ दीपक तू जल......!
तपा लौह सा मुझको अग्नि में,
आकाश नियंत्रित करने को, पाताल नियंत्रित करने को।
हर काल नियंत्रित करने को, जयमाल अलंकृत करने को।
ऐ दीपक तू अब जल......! ।।१।।
प्राण चाहते कठिन निमंत्रण,
फिर तू क्यों करता है छल,
ऐ दीपक तू अब जल......!
सांसों का हमको मोह नहीं,
कुछ न पाया पर क्षोभ नहीं।
कर्त्तव्य-पथ पर बलि जाने को,
देकर मुझको दो पल,
ऐ दीपक तू अब जल......! ।।२।।
अगणित-अगणित दीप जलाने,
तम के काल सदा को बनने।
झिलमिल-झिलमिल नयनों से,
अंठखेलीं करता चल ।
ऐ दीपक तू अब जल.......! ।।३।।
राहों में मित्र खड़े अपने हैं।
राखी को हाथ बढ़े अपने हैं।
दो बूढ़ी सी ओझल नजरें भीं,
व्याकुल सी देख रही सपने हैं।
उन सबसे विदा मांगने को,
क्या तू देगा एक कल...?
ऐ दीपक तू अब जल......! ।।४।।
सज्जा से स्वयं पुकार रहीं।
लज्जा से पुनः विचार रही।
उन रोती सी तरसती आंखों से ,
मिलने को दो एक पल।
ऐ दीपक तू अब जल......! ।।५।।
आलोकित करता चल राहों को,
हर वीर सदा अब बढ़ा चले।
हर अश्रु नयन का क्षमा करे।
जय हिन्द बोलकर धड़कन,
फिर से एक बार पुकार करे,
थोड़ी तो कर हलचल।
ऐ दीपक तू .......................अब जल....! ।।६।।
रचनाकार-निखिल देवी शंकर वर्मा
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
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Hmm v good
ReplyDeleteThanks!!!
Deleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteThanks, dear brother!
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteभाव भी भाषा भी
प्रणाम
जय हिन्द जय भारत
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
Deleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
प्रणाम।
जय हिन्द! जय भारत!
bahut sundar kavita
ReplyDeleteThank u! Shivam☺
DeleteVery nice
ReplyDeleteThank you, brother 😘😎
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