क्या विचार लेगा व्योम अब, फिर से अँधियारा होगा.....?
क्या सूरज उगने से पहले, यह अंबर काला होगा......?
होंगी अनेक मजबूरियाँ, फिर भी कदम उठाना होगा ।
द़स्तक दरवाज़े पर देकर, फिर तुमको आना होगा ।।१।।
सृष्टि सृजन का भाव, तुम्हारे कदमों में निरन्तर है ।
संघर्षों की पीड़ा व घायल मन में, थोड़ा-सा अंतर है ।
एक ऊँची छलांग की खातिर, कुछ गज पीछे जाना होगा ।
द़स्तक दरवाज़े पर देकर फिर तुमको आना होगा ।।२।।
पाँवों में छालें पड़ जायें, आ जायें कितनी बाधाएँ ।
भेद हृदय को घायल करती, गर्जन करती घोर घटाएँ ।
फिर गुलाब सी सुवास लेकर, निर्जन वन महकाना होगा ।
द़स्तक दरवाज़े पर देकर फिर तुमको आना होगा ।।३।।
अभिमन्यु हो महावीर तुम, शत्रु बड़ा विध्वंसक है ।
कालचक्र के चक्रव्यूह की, काट बड़ी आवश्यक है ।
विधि की लिखी कहानी में, पात्रों को स्वयं बनाना होगा ।
द़स्तक दरवाज़े पर देकर, फिर तुमको आना होगा ।।४।।
रचनाकार- निखिल वर्मा "गिरिजा शंकर"
Copyright © 2019
All rights reserved.
क्या सूरज उगने से पहले, यह अंबर काला होगा......?
होंगी अनेक मजबूरियाँ, फिर भी कदम उठाना होगा ।
द़स्तक दरवाज़े पर देकर, फिर तुमको आना होगा ।।१।।
सृष्टि सृजन का भाव, तुम्हारे कदमों में निरन्तर है ।
संघर्षों की पीड़ा व घायल मन में, थोड़ा-सा अंतर है ।
एक ऊँची छलांग की खातिर, कुछ गज पीछे जाना होगा ।
द़स्तक दरवाज़े पर देकर फिर तुमको आना होगा ।।२।।
पाँवों में छालें पड़ जायें, आ जायें कितनी बाधाएँ ।
भेद हृदय को घायल करती, गर्जन करती घोर घटाएँ ।
फिर गुलाब सी सुवास लेकर, निर्जन वन महकाना होगा ।
द़स्तक दरवाज़े पर देकर फिर तुमको आना होगा ।।३।।
अभिमन्यु हो महावीर तुम, शत्रु बड़ा विध्वंसक है ।
कालचक्र के चक्रव्यूह की, काट बड़ी आवश्यक है ।
विधि की लिखी कहानी में, पात्रों को स्वयं बनाना होगा ।
द़स्तक दरवाज़े पर देकर, फिर तुमको आना होगा ।।४।।
रचनाकार- निखिल वर्मा "गिरिजा शंकर"
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