माँगता हूँ , हे प्रभु ! तुमसे वही,
सामर्थ्य देना मुझको, ग़र हो सके।
बाँट लूँ , हिस्से का अपना वो भोजन।
रात को ताकि, कोई ना भूखा सो सके ।।१।।
झीने छप्परों से आती, बिखरी चाँदनी,
खोजती उन घरों में कुछ रोशनी ।
सर्दियों की रात में गिरती ओस भी,
है सुनाती, सीले सतुए की कहानी ।।२।।
मुझसे क्या तुम पूछते उनके हाल को...?
इस गरीबी में तरसते, हर बदहाल को ।
पोंछ कर आँसू , मैं उनके गाल के,
चूम लूँ , गीले हुए उस रूमाल को ।।३।।
मैं निकलकर महलों की जगमगाहट से,
छानता फिरता झुग्गियों की सुगबुगाहट में।
देखकर खाली कटोरी थाल पर,
रख दूँ ,अपनी रोटी उसकी दाल पर ।।४।।
रचनाकार -निखिल वर्मा
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