Sunday, March 17, 2019

विरह

"कहाँ गया वो मेरा बचपन,
कहाँ गई वह किलकारी?
कहाँ गई वो रंग की डिबिया,
कहाँ गई वो पिचकारी?

कहाँ मिटाऊँ हिय की तड़पन,
कहाँ लिखूं विरह की सरगम?
कहाँ छिपाऊँगा नयनों में,
बहती धाराओं का संगम?

कहाँ मिलेगा ऐसा जीवन,
हर दिन सरस और मनभावन,
कहाँ ढूंढ कर हृदय भाव को,
बाटूँगा मैं किससे हरदम?

कहाँ उड़ गए कोरे पन्ने ?
कहाँ गई वो सब स्याही?
कहाँ उड़ गए जल के बादल?
कहाँ गया भीगा‌ आँगन?"

रचनाकार निखिल देवी शंकर वर्मा
अध्ययनरत लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
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