Monday, May 12, 2025

चिरशान्ति का युद्ध


शान्ति प्रस्तावों के समर्थक,

विकृत नीतियों को पुनः गढ़ लें।

रश्मि के रथी से दहकते;

'कुरुक्षेत्र' के दिनकर ; वो पढ़ लें ।।१।।


विद्वत्ता का दंभ रखते।

हैं जो सशंकित देश...सुन लें ।

धम्म-पथ की त्रिपिटिका;

और गीता का अंतर समझ लें ।।२।।


श़मा की...लपटों में जलते,

हम पतंगों को हारना है।

तिमिर के अनुचरों का; 

जीवन यदि स्वीकारना है ।।३।।


युद्ध की संभावना में,

शान्ति कैसे हम वो चुन लें ?

युद्ध की हठ कर वह बैठा;

हम बुद्ध की उंगली पकड़ लें...? ।।४।।


रचनाकार- निखिल वर्मा 

तरंगिणी - श्रृंखला '२'

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Thursday, May 1, 2025

धुआँ

उठ रहा कुछ दूर से मौन‌ होकर;

धुंध-सा अस्पष्ट होकर आ तना है।

अवचेतना के प्राण को ढ़कते हुए,

हर तरफ फैला हुआ कोहरे-सा घना है।।१।।


झीनी फर्द में तारे छिपाकर आसमां अब;

मंदित चांदनी ओढ़ कर लेटा हुआ है।

सत्य धुंधलाता हुआ बेफिक्र होकर;

सुप्त कोने में कहीं दुर्बल पड़ा है।।२।।


चक्षु कितने बेचैन; बेबस हो चले हैं।

मौन अंतर में सिमटती साधना है।

कौन किसको हो विकल; कितना पुकारे...?

रैन अंचल में किलसती वेदना है।।३।।


खोजता है शून्यता की रेत में;

रत्न गर्भित निधि का मन;...वो कुआँ है।

कुछ धूमिल परछाईयों के चित्र लेकर, 

है खड़ा जो सामने; कुछ नहीं...बस धुआँ है।।४।।


रचनाकार - निखिल वर्मा 

कार्यरत - भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।

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