शान्ति प्रस्तावों के समर्थक,
विकृत नीतियों को पुनः गढ़ लें।
रश्मि के रथी से दहकते;
'कुरुक्षेत्र' के दिनकर ; वो पढ़ लें ।।१।।
विद्वत्ता का दंभ रखते।
हैं जो सशंकित देश...सुन लें ।
धम्म-पथ की त्रिपिटिका;
और गीता का अंतर समझ लें ।।२।।
श़मा की...लपटों में जलते,
हम पतंगों को हारना है।
तिमिर के अनुचरों का;
जीवन यदि स्वीकारना है ।।३।।
युद्ध की संभावना में,
शान्ति कैसे हम वो चुन लें ?
युद्ध की हठ कर वह बैठा;
हम बुद्ध की उंगली पकड़ लें...? ।।४।।
रचनाकार- निखिल वर्मा
तरंगिणी - श्रृंखला '२'
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