Thursday, July 3, 2025

नींव की ईंट

कई वर्षों से निर्माण होती एक इमारत के;

नित नए बनते हुए स्वरूप को ।

रत्न से चमकते पत्थरों के बीच;

दंभ भरती उसकी ऊँचाइयों के रूप को ।

हाँ, देखा तो था सबने बारी-बारी से....

और.... चुपके से उसकी दीवारों की साँसों में,

कान लगाकर सुनने पर...

सांझ के ढ़लने से कुछ पहले,

होती हैं आज भी कुछ-कुछ बातें ।

कुछ हिस्से जो उसको हैं समेटे;

कुछ रास्ते, कुछ गलियारे; एक चौखट, एक आँगन, 

कुछ सीढ़ियाँ, एक अटारी; कुछ कमरे, कुछ दरवाजे;

कुछ खिड़कियाँ, कुछ रोशनदान और .... कुछ झरोखे।

याद रखते हैं आज भी;

नींव की उस ईंट को कुछ इस तरह....

उसकी अनवरत तपस्या और त्याग को;

उसके नेतृत्व को; उसके श्रम को;

उसके अनगिनत कष्टों को भूलकर;

निस्वार्थ कर्म और वैभवरहित जीवन को ।

याद रखते हैं आज भी उसी तरह ।


रचनाकार - निखिल वर्मा 

कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग, 

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार 

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