"यूं तो कहते हैं बहुतेरे, दुनिया बहुत बड़ी है गोल।
पर मेरी माँ के आँचल में, सिमटा मेरा सब भूगोल।।"
पर मेरी माँ के आँचल में, सिमटा मेरा सब भूगोल।।"
______________________________________
खुद की एक तस्वीर बनाई थी मैंने,
खुद से कुछ लकीरें उभर आईं।
अपने आँचल की छाँव लेकर,
इस कड़ी धूप में मेरी ' माँ ' आई ।।१।।
सादगी उस 'मन' की,श्रम भरे जीवन की।
कोई थकावट भी 'ना',
उनके चेहरे पर नज़र आई'।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर,
इस कड़ी धूप में मेरी ' माँ ' आई।।२।।
जब भी कोई कठिनाई मेरे पास आई,
चेहरे पर मेरे, कभी उदासी छाई।
रोककर उसका रास्ता, सबसे पहले,
मेरी राहें भी उसने माकूल बनाईं।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर ,
इस कड़ी धूप में मेरी ' माँ ' आई।।३।।
मैंने थाली से अपनी, सारे पकवान गिरा डाले |
चाहे लोगों की नजरें,उन पर आकर ललचाई।
तेरे हाथों से बनी "रोटी" ना थी,
जिसको खाकर मेरे मन ने सदैव तृप्ति पाई।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर,
इस कड़ी धूप में मेरी "माँ" आई ।।४।।
आज फिर से गोद में लेटकर,
बचपन की याद आँखों में नजर आई।
ना छत होगी गर कभी जीवन में,
देना मुझको अपने चरणों में जगह माई ।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर,
खुद की एक तस्वीर बनाई थी मैंने,
खुद से कुछ लकीरें उभर आईं।
अपने आँचल की छाँव लेकर,
इस कड़ी धूप में मेरी ' माँ ' आई ।।१।।
सादगी उस 'मन' की,श्रम भरे जीवन की।
कोई थकावट भी 'ना',
उनके चेहरे पर नज़र आई'।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर,
इस कड़ी धूप में मेरी ' माँ ' आई।।२।।
जब भी कोई कठिनाई मेरे पास आई,
चेहरे पर मेरे, कभी उदासी छाई।
रोककर उसका रास्ता, सबसे पहले,
मेरी राहें भी उसने माकूल बनाईं।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर ,
इस कड़ी धूप में मेरी ' माँ ' आई।।३।।
मैंने थाली से अपनी, सारे पकवान गिरा डाले |
चाहे लोगों की नजरें,उन पर आकर ललचाई।
तेरे हाथों से बनी "रोटी" ना थी,
जिसको खाकर मेरे मन ने सदैव तृप्ति पाई।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर,
इस कड़ी धूप में मेरी "माँ" आई ।।४।।
आज फिर से गोद में लेटकर,
बचपन की याद आँखों में नजर आई।
ना छत होगी गर कभी जीवन में,
देना मुझको अपने चरणों में जगह माई ।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर,
इस कड़ी धूप में मेरी "माँ" आई।।५।।
इक डोर है,तेरे मेरे जीवन की ।
हम "जीत" लेंगे अपनी ,आपका साथ पाकर, माई ।
संकल्प इस मन का ; जीवन से तेरे,
दूर कर दूँ ये कष्टप्रद, उदासी छाई।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर,
इक डोर है,तेरे मेरे जीवन की ।
हम "जीत" लेंगे अपनी ,आपका साथ पाकर, माई ।
संकल्प इस मन का ; जीवन से तेरे,
दूर कर दूँ ये कष्टप्रद, उदासी छाई।
हाँ,अपने आँचल की छाँव लेकर,
इस कड़ी धूप में मेरी "माँ" आई।।६।।
Poet: Nikhil Verma
Tarangini Series , Dated: 26/06/2016
© Copyright 2018. All rights reserved.
e-mail : nverma161094@gmail.com
Poet: Nikhil Verma
Tarangini Series , Dated: 26/06/2016
© Copyright 2018. All rights reserved.
e-mail : nverma161094@gmail.com
Ati uttam
ReplyDeleteAti uttam
ReplyDeleteThanks brother
Delete👍👍🌞🌞🌞 बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteThanks brother!
Deleteअतुलनीय
ReplyDeleteThanks Pawan Bhai !!!☺🌈💎 Missing you my friend. Lots of love.
Deleteमाँ पापा की गोदी मे
ReplyDeleteदुख सारे मेरे कट जाते।
जब रवि की एक किरण पड़ती
तो सब अँघियारे मिट जाते। ।
Thanku God for such a beautiful gift...
Thanks !!! Nice lines.
Delete