Thursday, January 4, 2018

गुरू वंदना

" तरंगिनी "- श्रृंखला

 गुरु वंदना

गुरूवर मेरे तुम तो, अमृत की गागर हो।
यदि मैं दरिया हूँ तो, तुम मेरे सागर हो।।
मैं जड़ खड़ा तरु हूँ, तुम शीतल मन्द बयार।
अपने ज्ञानामृत से, कर दो बेड़ा मेरा पार।।१।।

मेरे जीवन से गुरूजन, अँधियार मिटा देना।
लौ विद्या की मन में, उजियार जगा देना।
अभिमान मिटाकर तुम, हमें नम्र बना देना।
तप, त्याग, विमल मन कर, सद्ज्ञान बढ़ा देना।।२।।

सप्त जलधि जग की, मसि कोटि पात्र भर दे।
शत्  लाख कलम चाहे, लिखे कोटि शब्द असीम।
कर ना फिर भी पाऊँ, तेरी महिमा का गुणगान।
तुम पर गुरूवर मेरे, माँ देवी का वरदान।
भ्रम दूर करो मेरे, हो मेरा भी कल्याण।।३।।

कर्म मेरा हर वो, राष्ट्र समर्पित हो।
तुमसे जुड़कर मेरा, पथ पुण्य- प्रदर्शित हो।
जैसे शशि के उगते ही, जग जाएँ तारें 'सुप्त',
तुम हो मेरे चाणक्य, मैं तेरा चन्द्रगुप्त।।४।।

रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा,
अध्ययनरत - लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
काॅपीराइट सर्वाधिकार सुरक्षित, संरक्षित एवं स्वामित्व प्राप्त।

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