Friday, January 5, 2018

आजा बचपन एक बार फिर तू.....!

मैं उलझे सवालों के हल ढूँढ़ता हूँ।
मैं फुर्सत के अपने दो पल ढूँढ़ता हूँ।
मैं गीतों में अपनी ग़ज़ल ढूँढ़ता हूँ।
है आँखों में कितना, वो जल ढूँढ़ता हूँ।।१।।

भीड़ में भी अपनी जगह ढूँढ़ता हूँ।
क्यों खोया हूँ इसकी वजह ढूँढ़ता हूँ।
मैं बीता हुआ हर समय ढूँढ़ता हूँ।
मैं अपने प्रयत्नों की जय ढूँढ़ता हूँ।।२।।.....

वो कागज़ की गेंदें, वो कपड़े की गुड़िया।
वो मेले की कुल्फी, वो चूरन की पुुड़़िया।
माँ का वो आँचल, वो पापा के कन्धे।
निर्द्वंद स्वर से गूंजे, वो अपने बरंदे।
मैं कदमों की अपनी पहल ढूँढ़ता हूँ।।३।।...........

वो पक्षी, वो बादल, वो बारिश का पानी,
वो गुजरे बचपन की मेरी कहानी।
वो चंपक का चीकू, वो मीना का तोता।
वो बारिश के जल में, कागज़ की नौका।
मैं गगनों में फिर वो गगन ढूँढ़ता हूँ।।४।।............

वो सर्दी की सिहरन, वो मधुमासी पुलकन।
वो बिखरी हुई सी पतझड़ की सिसकन।
मैं गर्मी में फिर वो तपन ढूँढ़ता हूँ।।५।।............

वो खोये जो बचपन के पल ढूँढ़ता हूँ।
मासूमियत से गुजरा, वो कल ढूँढ़ता हूँ।
बड़ी शान की ये मेरी जिंदगानी।
मैं फिर भी तो इसमें चुभन ढूँढ़ता हूँ।।६।।.........

मैं फुर्सत के अपने दो पल ढूँढ़ता हूँ।
मैं उलझे सवालों के हल ढूँढ़ता हूँ.......................

रचनाकार-निखिल देवी शंकर वर्मा
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
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