Friday, February 2, 2018

"आधुनिक स्वर"


सिंह की गर्जन जो हो,  विश्वास उठकर बोलता है।
कूजती कोयल का स्वर,  पट-प्यार दिल के खोलता है।
उठती लहरों के नृत्य पर,  अम्बु-जलधर झूलता है।
दूतिका पवन की सरसराहट से,  खलिहान-आँचल डोलता है   ।।१।।
कड़कड़ाती दामिनी ;  जब सीना चीर दे आकाश का,
मिलन को तब ही तो आतुर ;  हो राधिका घनश्याम से।
गरजते जब मेघ, अपना रूप लें ;  विकराल धर,
तब ही तो इस धरा पर,  प्रेमाश्रुओं की बरसात हो   ।।२।।
कोरा कागज क्या कहेगा,  शब्द हिय के उद्गार के,
नयन भी न समझते ,  स्वर नयन की पुकार के।
आज के युग की कहानी में भ्रमर,  गुंजार कर नायक बने,
अश्रुओं की अवहेलना,  यह 'मूक मृग' कैसे सहे .......?  ।।३।।

रचनाकार- निखिल वर्मा
कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय।                                          Copyright ©️ 2018.   All rights reserved. 

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