सिंह की गर्जन जो हो, विश्वास उठकर बोलता है।
कूजती कोयल का स्वर, पट-प्यार दिल के खोलता है।
उठती लहरों के नृत्य पर, अम्बु-जलधर झूलता है।
दूतिका पवन की सरसराहट से, खलिहान-आँचल डोलता है ।।१।।
कड़कड़ाती दामिनी ; जब सीना चीर दे आकाश का,
मिलन को तब ही तो आतुर ; हो राधिका घनश्याम से।
गरजते जब मेघ, अपना रूप लें ; विकराल धर,
तब ही तो इस धरा पर, प्रेमाश्रुओं की बरसात हो ।।२।।
कोरा कागज क्या कहेगा, शब्द हिय के उद्गार के,
नयन भी न समझते , स्वर नयन की पुकार के।
आज के युग की कहानी में भ्रमर, गुंजार कर नायक बने,
अश्रुओं की अवहेलना, यह 'मूक मृग' कैसे सहे .......? ।।३।।
रचनाकार- निखिल वर्मा
कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय। Copyright ©️ 2018. All rights reserved.
कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय। Copyright ©️ 2018. All rights reserved.
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