माँ, मैं सकता कैसे भूल?
तुमने चलना सिखलाया।
अक्षर-अक्षर जोड़-जोड़ कर,
मुझको पढ़ना सिखलाया।।१।।
सामाजिक बंदिशें तोड़कर,
समरक्षेत्र में स्वयं उतरकर,
चक्रव्यूह में घायल इस,
अभिमन्यु को लड़ना सिखलाया।।२।।
माँ, मैं सकता कैसे भूल?
तुमने चलना सिखलाया।
-निखिल वर्मा
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Very nice Nikhil ji
ReplyDeleteह्रदय को द्दू जाने वाली कविता शानदार
Thanks bhai!!!
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