Saturday, September 8, 2018

अग्निपथ


सत्य के पथ पर पथिक, कौन कब तक टिक सकेगा,
इसलिए मंजिल तलक, यह पथिक पैदल चलेगा।
क्या पता कुछ मीत मेरे, साथ छोड़ेंगे हमारा।
यह अकेला था सदा, यह अकेला ही लड़ेगा।।१।।

प्राण घातक शक्तियों ने, प्राण साधे हैं हमेशा।
अग्निपथ पर पाँव धरकर, दर्द को आराम होगा।
विषभरे  पात्रों के तल में , कुछ बहुत अमृत मिलेगा।
इसलिए मंजिल तलक, यह पथिक पैदल चलेगा।।२।।

मातृभूमि की पुकारें, कह रहीं विश्राम मत कर,
धैर्य तजकर ही तुम्हारे,धरा का कल्याण होगा।
अड़चनों का शैल भी, राह का राही बनेगा।
इसलिए मंजिल तलक, यह पथिक पैदल चलेगा।।३।।

रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा "गिरिजाशंकर"
अध्ययनरत- लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ।
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