Saturday, September 15, 2018

" हिन्दी "- हमारी पहचान, हमारा गर्व

बिखरे स्वरों को जोड़ती, वह साज़ हिन्दी है।
मेरी तुम्हारी आत्मा की, आवाज़ हिन्दी है।
कवि हृदय की ; कलम-ए-तलवार हिन्दी है।
बोलियों में विश्व की, सरताज़ हिन्दी है।।१।।

सूखे मरुस्थल को‌, जो जल‌ से; सींचते बादल,
उन घटाओं से, बरसात की; एक आस हिन्दी है।
खेत श्रम से, जोतता जो, ले कर अपना एक हल,
उस कृषक के, बेचैन मन की, प्यास हिन्दी है।।२।।

शक्ति है, पूजा है, धर्म है, संकल्प है,
आस है, विश्वास है, अरदाज़ हिन्दी है।
संस्कृतियों का है उत्थान, आंदोलनों का ये विचार।
युद्ध की घोषित विजय की, जय-जयकार हिन्दी है।।३।।

कोटि सवा सौ हृदयों की, मुस्कान हिन्दी है।
यह हमारे भारत की, पहचान हिन्दी है।
ज्ञानियों का ज्ञान है , तप का प्राण हिन्दी है।
ये हमारा मान, ये अभिमान हिन्दी है।।४।।

रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा "गिरिजाशंकर"
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