Saturday, September 30, 2023

बदल रहा हूँ मैं....!


मिथ्या और सत्य के , जो युद्ध में भी मौन है ।

साधकों तुम ही बताओ , वो किस तरफ ; वो कौन है ?

आँधियों के बीच , मैं खड़ा था , लड़ रहा ;  

हर दिशा से आ रहे , वार सारे सह रहा ।

पर अब उजाले से , अँधेरे की तरफ‌ ; बढ़ रहा हूँ मैं।

हाँ , बदल रहा हूँ मैं ।। १।।


मन‌ को मेरे , काटती है ;  रूढ़िवादी धार जो ।

रिक्तियाँ न भर सकें , शब्दों की उस कतार को ।

कोशिशें करते सदा ; मैं राहें जोड़ता रहा ।

पर्वतों सा , था अडिग ; न टूटता , न गिर रहा ।

पर अब उजाले से , अँधेरे की तरफ‌ ; बढ़ रहा हूँ मैं।

हाँ , बदल रहा हूँ मैं ।। २।।


मैं अकिंचन क्या बनूँगा , वो मनुज ; जो पूर्ण हो ।

इसलिए मेरा विखंडन , खण्ड-खण्ड चूर्ण हो ।

ज्ञान का‌ भण्डार ; जो पोथियों में सिमट रहा ;

बिखरे हुए उन मोतियों को , मैं खड़ा था‌ बिन रहा ।

पर अब उजाले से , अँधेरे की तरफ‌ ; बढ़ रहा हूँ मैं।

हाँ , बदल रहा हूँ मैं ।।३।।



रचनाकार: निखिल वर्मा

कार्यरत: भारत मौसम विज्ञान विभाग, 

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार।

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