Wednesday, September 13, 2023

मैं हिन्दी हूँ..........!

महादेवी की 'दीपशिखा', मैं 'कुल्ली-भाट' निराला की।

दिनकर की मैं 'कुरूक्षेत्र', प्रतिष्ठा मैं काव्यशाला की।

असी घाट की मस्त शाम , मैं अवध अटा की झाला हूँ।

सदा छलकती, सदा बरसती , बच्चन की 'मधुशाला' हूँ।।१।।


'सतसैया' हूँ बिहारी की, परसाई 'निंदा-रस' का मैं संसार। 

प्रेमचंद की 'ईदगाह' ;  मैं पंत की 'वीणा' की झंकार।

जयशंकर की 'कामायनी', तुलसी की अमिट निशानी हूँ।

जायसी का मैं प्रेमग्रंथ, कबिरा की फक्कड़ वाणी हूँ ।।२।।


मैं मानस का रामचरित, मैं सूर-सखा का बचपन हूँ।

जन-मानस का दर्पण मैं, मैं काशी पर की तर्पण हूँ।

मैं 'पंचवटी' की‌‌ छाया ; हूँ मैं 'यशोधरा' का अंतर्मन ।

नंदगांव का माखन मैं, मैं हूँ मीरा का विरह भजन ।। ३।।


सुमधुर, रुचिकर, भावबोधिनी ; ज्ञान सरस बरसाने वाली, 

आर्यावर्त के भरतखण्ड के, मस्तक की मैं बिंदी हूँ।

सकल कल्पना के पंखों को, लाकर साथ जोड़ने वाली,

भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ, मैं स्वर की रानी "हिन्दी" हूँ ।।४।।


रचनाकार- निखिल वर्मा

कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग, 

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार।

कॉपीराइट ©️ 2023, सर्वाधिकार सुरक्षित व संरक्षित।

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