अपना बरमदा, अपना आँगन,
चिड़िया बनकर, यहाँ फुदकना ।
नन्ही-सी कली अपनी बगिया की,
गुलशन में खिलकर सदा महकना ।।१।।
सागर सा गहरा मन है,
कोई थाह तुम्हारी न पाया ।
पर्वत सा अविचल तूफानों में,
तुमसा कोई नहीं पाया ।।२।।
हम सबकी तुम शक्ति बनकर,
अपने घर में आई हो।
मेरी आधी दुनिया हो तुम,
" माँ -पापा " की परछाईं हो ।।३।।
तुम जीत चाहती हो जैसी , वो जीत तुम्हारी निश्चित है।
बहुत निकट हो मंज़िल के , बस कुछ क़दमों की दूरी है।
शक्ति तुम्हारी सूरज जैसी , सामर्थ्य गगन से बढ़कर है।
बस एक ऊँची छलाँग है बाकी, फिर सारी दुनिया तेरी है ।।४।।
मेरी कहानी की " सिंड्रेला ",
जब भी तुम मुझसे रूठी हो,
मेरा पूरा ध्यान समेटे,
तुम छोटी सी मेरी बेटी हो ।।५।।
रचनाकार: निखिल वर्मा
कार्यरत: भारत मौसम विज्ञान विभाग,
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार।
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