Thursday, February 8, 2024

मैं लिखता हूँ

किसी दरिया के पानी को भी, मैं आग लिखता हूँ।

कलम की कुछ खता तो है, मगर जज़्बात लिखता हूँ।

थोड़ा-बहुत तो ठीक है पर , मैं बेहिसाब लिखता हूँ।

तुम इश्क कहते हो जिसे, मैं इंकलाब लिखता हूँ।।

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