-लहरों के स्वरों की झंकार
किसी दरिया के पानी को भी, मैं आग लिखता हूँ।
कलम की कुछ खता तो है, मगर जज़्बात लिखता हूँ।
थोड़ा-बहुत तो ठीक है पर , मैं बेहिसाब लिखता हूँ।
तुम इश्क कहते हो जिसे, मैं इंकलाब लिखता हूँ।।
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