कुछ बिखरे, कुछ सिमटे,
कुछ गहरे, कुछ छिछले,
ग़म को लिए समेटे अपने,
कितनी फरियादों से लड़ता हूँ ।
बेचैनी में आकर अक्सर,
मैं खुद की आवाज़ों से डरता हूंँ ।।१।।
सबको खुश करते-करते,
मैं सबको नाखुश करता हूंँ।
मन में भावों को लिए हमेशा,
सबकी नाराज़ी ले फिरता हूँ ।
बेचैनी में आकर अक्सर,
मैं खुद की आवाज़ों से डरता हूंँ ।।२।।
दूर पहाड़ों से टकराती,
मुझको अपने पास बुलातीं ;
उन सारी उम्मीदों को लेकर,
मैं धीरे-धीरे चलता हूँ ।
बेचैनी में आकर अक्सर,
मैं खुद की आवाज़ों से डरता हूंँ ।।४।।
रचनाकार -निखिल वर्मा
कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ
भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।
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