Friday, April 5, 2024

मैं आवाज़ों से डरता हूँ....!

कुछ बिखरे, कुछ सिमटे,

कुछ गहरे, कुछ छिछले,

ग़म को लिए समेटे अपने, 

कितनी फरियादों से लड़ता हूँ ।

बेचैनी में आकर अक्सर,

मैं खुद की आवाज़ों से डरता हूंँ ।।१।।


सबको खुश करते-करते,

मैं सबको नाखुश करता हूंँ।

मन में भावों को लिए हमेशा,

सबकी नाराज़ी ले फिरता हूँ ।

बेचैनी में आकर अक्सर,

मैं खुद की आवाज़ों से डरता हूंँ ।।२।।


दूर पहाड़ों से टकराती,

मुझको अपने पास बुलातीं ;

उन सारी उम्मीदों को लेकर,

मैं धीरे-धीरे चलता हूँ ।

बेचैनी में आकर अक्सर,

मैं खुद की आवाज़ों से डरता हूंँ ।।४।।



रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।

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