Saturday, May 4, 2024

समर्पण

नीली छतरी के रखवाले ;

हम सबके तुम पालनहारे।

अगर सौंप दूँ , मैं तुमको ;

हृदयभाव की कुंजी अपनी।

तो क्या तुम आश्वस्त करोगे...?

मन से मेरे ; छल न‌ करोगे....?

निश्छलता के मोती लेकर.....

कपट की माला में न पिरोओगे...?।।१।।


सुना बहुत है तुमको लेकर,

बहुत परखते पल-पल सबको ।

आज तुम्हें मैं परखूँगा ।

तब जाकर सब सौंपूँगा ।

गुण थोड़े जो ; वो भी तुम्हारे,

मेरे सारे दोष तुम्हारे ।

पुण्य दिए ; गर जो कुछ हैं भी,

मेरे सारे पाप तुम्हारे ।

रहम तुम्हारा, वहम तुम्हारा ।

मेरा सारा अहम् तुम्हारा ।।२।।


सतत प्रतीक्षा, सकल समीक्षा;

हर पल होती हुई परीक्षा,

में लेकर कोरा कागज़ बैठा अक्सर,

मैं अब भ्रम-जालों से दूर रहूँगा ।

जो कुछ था मेरा ; अब से वह,

करता हूँ बस तुम्हें समर्पित।

मेरे भोले-मन की चंचलता,

को आकर अब करो नियंत्रित ।।३।।


रचनाकार- निखिल वर्मा

मौसम केंद्र, लखनऊ

भारत मौसम विज्ञान विभाग ।

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