Monday, May 6, 2024

कुछ

कुछ तुम देख रहे आँखों में,

कुछ धुँधला-सा एक सपना ।

कुछ देखा मैंने अंतर में,

दूर हुआ कोई अपना ।

कुछ स्वर है जो गूँज रहा ।

कुछ आवाज़ों का मंज़र है।

कुछ टपक रही बूँदों से,

कुछ भ्रम का एक समंदर है ।

कुछ भीड़ भरी है इस दिल में।

कुछ मुँह मोड़े तन्हाई है ।

कुछ आँखों में है नींद बसी,

कुछ करवट ली अँगड़ाई है।

कुछ बगिया में हैं फूल खिले,

कुछ मुस्कानें हैं उपवन की ।

कुछ साँसों की गहराई में ,

कुछ रुकती-चलती धड़कन की ।

मैंने देखा और बहुत कुछ...!

जो शून्य तलक जाता दिखता।

अँधेरे में दूर खड़ा ;

कोई मुझे बुलाता दिखता ।

इतने अंदर-बाहर में जब,

कुछ न हो ............. फिर भी कुछ तो है  !  


रचनाकार- निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ 

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार ।

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