कुछ तुम देख रहे आँखों में,
कुछ धुँधला-सा एक सपना ।
कुछ देखा मैंने अंतर में,
दूर हुआ कोई अपना ।
कुछ स्वर है जो गूँज रहा ।
कुछ आवाज़ों का मंज़र है।
कुछ टपक रही बूँदों से,
कुछ भ्रम का एक समंदर है ।
कुछ भीड़ भरी है इस दिल में।
कुछ मुँह मोड़े तन्हाई है ।
कुछ आँखों में है नींद बसी,
कुछ करवट ली अँगड़ाई है।
कुछ बगिया में हैं फूल खिले,
कुछ मुस्कानें हैं उपवन की ।
कुछ साँसों की गहराई में ,
कुछ रुकती-चलती धड़कन की ।
मैंने देखा और बहुत कुछ...!
जो शून्य तलक जाता दिखता।
अँधेरे में दूर खड़ा ;
कोई मुझे बुलाता दिखता ।
इतने अंदर-बाहर में जब,
कुछ न हो ............. फिर भी कुछ तो है !
रचनाकार- निखिल वर्मा
कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ
भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार ।
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