Wednesday, June 26, 2024

धीरे-धीरे !!!

सुमधुर, अतुलित निर्मल-शीतल ; धीमी सुखकर पवन चला दो।

शान्त कराने विचलित मन को , मैं आऊँगा.......धीरे-धीरे ।।१।।


बागों में हर अंतराल पर, कलियाँ कुछ चुन-चुन बिखरा दो,

महकाने अपने जीवन को , मैं आऊँगा........धीरे-धीरे ।।२।।


रेतीली भूमि के ऊपर , तुम पत्तों का महल बना दो ।

छाँव दिखाने तपते तन को, मैं आऊँगा........धीरे-धीरे ।।३।।


क़लम उठाकर पलकों की, जज़्बातों की स्याही भर लो,

लिखवाने कुछ पन्ने दिल के, मैं आऊँगा........धीरे-धीरे ।।४।।


रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत - मौसम केंद्र लखनऊ

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।

Copyright ©️ 2024. All rights reserved.

Wednesday, June 19, 2024

प्रस्फुटन

जब सत्य कसौटी पर कसने ;

को माँग रहा , हर पल घर्षण ।

तब कैसे बाँध हृदय को ,

पीछे कर लूँ , मैं अपना मन.....?।।१।।


जब बहती धारा नदियों की‌,

चीर रही हों वन-कानन ।

तब मूँद कर अपनी आँखों को ,

कैसे चल दूँ , मैं बिन धड़कन....? ।।२।।


जब छल से भरे कोलाहल में ,

गूँजें न स्वर की एक धड़कन ।

तब समझौता कर स्वाभिमान से ;

कैसे दिखलाऊँ अपनापन.....? ।।३।।


विचरण करते नभचर अक्सर ,

करते हर पल जब कोलाहल ।

तब कैसे दूर अकेले में ,

खोजूँ मैं अपना खालीपन....? ।।४।।


जो गिरा भूमि पर लड़ते-लड़ते ,

धूलि समर्पित कण-समान हो ।

मैं अनजाने भी कैसे कह दूँ , 

वह शिखरों के योग्य नहीं.....? ।।५।।


मुझे खोजने को जब चलती ,

राजमहल की कुछ नज़रें ।

तब-तब खुद को मैं पाता हूँ ,

एक निर्जन-निर्धन कुटिया में...। ।।६।।


रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।

Copyright ©️ 2024. All rights reserved.