सुमधुर, अतुलित निर्मल-शीतल ; धीमी सुखकर पवन चला दो।
शान्त कराने विचलित मन को , मैं आऊँगा.......धीरे-धीरे ।।१।।
बागों में हर अंतराल पर, कलियाँ कुछ चुन-चुन बिखरा दो,
महकाने अपने जीवन को , मैं आऊँगा........धीरे-धीरे ।।२।।
रेतीली भूमि के ऊपर , तुम पत्तों का महल बना दो ।
छाँव दिखाने तपते तन को, मैं आऊँगा........धीरे-धीरे ।।३।।
क़लम उठाकर पलकों की, जज़्बातों की स्याही भर लो,
लिखवाने कुछ पन्ने दिल के, मैं आऊँगा........धीरे-धीरे ।।४।।
रचनाकार -निखिल वर्मा
कार्यरत - मौसम केंद्र लखनऊ
भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।
Copyright ©️ 2024. All rights reserved.