जब सत्य कसौटी पर कसने ;
को माँग रहा , हर पल घर्षण ।
तब कैसे बाँध हृदय को ,
पीछे कर लूँ , मैं अपना मन.....?।।१।।
जब बहती धारा नदियों की,
चीर रही हों वन-कानन ।
तब मूँद कर अपनी आँखों को ,
कैसे चल दूँ , मैं बिन धड़कन....? ।।२।।
जब छल से भरे कोलाहल में ,
गूँजें न स्वर की एक धड़कन ।
तब समझौता कर स्वाभिमान से ;
कैसे दिखलाऊँ अपनापन.....? ।।३।।
विचरण करते नभचर अक्सर ,
करते हर पल जब कोलाहल ।
तब कैसे दूर अकेले में ,
खोजूँ मैं अपना खालीपन....? ।।४।।
जो गिरा भूमि पर लड़ते-लड़ते ,
धूलि समर्पित कण-समान हो ।
मैं अनजाने भी कैसे कह दूँ ,
वह शिखरों के योग्य नहीं.....? ।।५।।
मुझे खोजने को जब चलती ,
राजमहल की कुछ नज़रें ।
तब-तब खुद को मैं पाता हूँ ,
एक निर्जन-निर्धन कुटिया में...। ।।६।।
रचनाकार -निखिल वर्मा
कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ
भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।
Copyright ©️ 2024. All rights reserved.
No comments:
Post a Comment