Sunday, July 28, 2024

याद आएगी.......!

वक्त ठहरा ही रहे ; थोड़े जतन कर ,

मैं ज़रा कुछ सीख लूँ ; सूर्य के अनुभवों से  ।

पक्षियों के घोंसलों में लौटने तक ,

शाम ढ़लने‌..........न देना बदलियों से ।

एक सयाना युवक ; बूढ़ा हो चला है कागज़ों में,

लगता है कि चूक हो गई है, पढ़ने में कोई ।

या विटामिन की‌ कमी है ; पारखी नज़रों में सबकी।


आपकी‌ वो कुर्सी जब कभी खाली होगी,

मेज पर कोई, कभी जब फाइल न होगी।

तब कभी बिल के विषय में पूछने को,

मैं अकेला आऊँगा..........याद आएगी  ।।१।।


कुछ अनसुने किस्से, कुछ अनकही बातें।

कुछ फाइलों की जिल्द में, अनुभाग की यादें।

आफिस की जद्दोजहद में, कभी-कभी थक जाएंगे,  

और ज़िन्दगी के अनुभवों को समेटे वृक्ष को,

जब न पास अपने पाएंगे.......याद आएगी  ।।२।।


ज़िन्दगी के वसंतों में झूलते, पक्षी ‌जो हम हैं,

बारिशों की चोट में, छप्परों की ओट को,

धूप में एक गांव की, नर्म शीतल छांव को, 

और पतझड़ों में बहारें खोजने को,

जब कभी बाहर निकलकर आएंगे.....याद आएगी ।।३।।


कुछ बहुत बेचैन होगा मन कभी जब,

आपके अनुभवों की होगी जरूरत,

उलझी हुई बातें सुलझाने को,

बैठकर न मिल सकेंगे.....याद आएगी  ।।४।।


मैं कहता तो हूँ अक्सर अकेले में,

कि सब संभाल लूँगा ।

पर जब स्वयं को संभालने की बात आएगी......

तब.........याद आएगी ।।५।।


आपके बिन जीएस की सूनी दीवारें,

चाय की चुस्की पर भी महक न पाएँगी ।

पान खाकर हमारे तिवारी सर की,

कुछ कहानियाँ भी अधूरी रह जाएँगी ........ याद आएगी ।।६।।



रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।

Copyright ©️ 2024. All rights reserved.



Wednesday, July 24, 2024

दस्तक

पवन‌ चली जब पुरवाई ,

कुछ आहट दी सुनाई है।

मोती बनकर आज बरसने,

घटा गगन पर छाई है ।।१।।


बाहर आकर जब देखा,

तब आँगन में चुगने दाना ।

दरवाजे पर नन्ही चिड़िया,

दस्तक देने आई है ।।२।।


स्वागत को कुछ फूल बिखेरे,

कहीं नवस्वर की‌ शहनाई है।

कुछ दीप जलें हैं चौखट पर,

पलकों पर कई बधाई हैं ।।३।।


इतनी सुंदर किलकारी पर, 

बगिया भी मुस्काई है।

अपने नन्हे पंखों से उड़ने,

परी गगन से आई है ।।४।।


रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र, लखनऊ 

भारत मौसम विज्ञान विभाग,भारत सरकार।

Copyright ©️ 2024. All rights reserved.

Monday, July 22, 2024

दर्पण

जो कुछ पाया तुमसे मैंने,

अर्पण कर चलता मैं जाऊँ ?

मन का प्रतिबिम्बन कर अपने,

दर्पण होकर मैं दिखलाऊँ ? ।।१।।


भावुकता में अश्रु समर्पित,

किस धारा में बहता जाऊँ ?

मोती की माला में बंधकर,

किन गहनों की शोभा पाऊँ ? ।।२।।


चुप होकर‌ कुछ व्याकुलता देख,

मन की कुछ मूक विवशता देख,

मैं खोलकर लब की जंजीरें,

स्वर को कैसे आज़ाद करूँ ? ।।३।।


जो देर हुई, कुछ आने में, 

क्यों ढ़लती शाम निहारूं मैं ?

बंद कोठरी में आखिर,

किस उजियारे को खोजूं मैं ? ।।४।।


जड़ता न मेरी प्रकृति है ,

बस थोड़ी सी परवशता है।

फिर भी इतने प्रतिबंधों में,

मैं सब कुछ कहना क्यों चाहूँ......? ।।५।।



रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ 

भारत मौसम विज्ञान विभाग , भारत सरकार।

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