जो कुछ पाया तुमसे मैंने,
अर्पण कर चलता मैं जाऊँ ?
मन का प्रतिबिम्बन कर अपने,
दर्पण होकर मैं दिखलाऊँ ? ।।१।।
भावुकता में अश्रु समर्पित,
किस धारा में बहता जाऊँ ?
मोती की माला में बंधकर,
किन गहनों की शोभा पाऊँ ? ।।२।।
चुप होकर कुछ व्याकुलता देख,
मन की कुछ मूक विवशता देख,
मैं खोलकर लब की जंजीरें,
स्वर को कैसे आज़ाद करूँ ? ।।३।।
जो देर हुई, कुछ आने में,
क्यों ढ़लती शाम निहारूं मैं ?
बंद कोठरी में आखिर,
किस उजियारे को खोजूं मैं ? ।।४।।
जड़ता न मेरी प्रकृति है ,
बस थोड़ी सी परवशता है।
फिर भी इतने प्रतिबंधों में,
मैं सब कुछ कहना क्यों चाहूँ......? ।।५।।
रचनाकार -निखिल वर्मा
कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ
भारत मौसम विज्ञान विभाग , भारत सरकार।
Copyright ©️ 2024. All rights reserved.
No comments:
Post a Comment