Monday, July 22, 2024

दर्पण

जो कुछ पाया तुमसे मैंने,

अर्पण कर चलता मैं जाऊँ ?

मन का प्रतिबिम्बन कर अपने,

दर्पण होकर मैं दिखलाऊँ ? ।।१।।


भावुकता में अश्रु समर्पित,

किस धारा में बहता जाऊँ ?

मोती की माला में बंधकर,

किन गहनों की शोभा पाऊँ ? ।।२।।


चुप होकर‌ कुछ व्याकुलता देख,

मन की कुछ मूक विवशता देख,

मैं खोलकर लब की जंजीरें,

स्वर को कैसे आज़ाद करूँ ? ।।३।।


जो देर हुई, कुछ आने में, 

क्यों ढ़लती शाम निहारूं मैं ?

बंद कोठरी में आखिर,

किस उजियारे को खोजूं मैं ? ।।४।।


जड़ता न मेरी प्रकृति है ,

बस थोड़ी सी परवशता है।

फिर भी इतने प्रतिबंधों में,

मैं सब कुछ कहना क्यों चाहूँ......? ।।५।।



रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ 

भारत मौसम विज्ञान विभाग , भारत सरकार।

Copyright ©️ 2024. All rights reserved.

No comments:

Post a Comment