मैं उलझे सवालों के हल ढूँढ़ता हूँ।
मैं फुर्सत के अपने दो पल ढूँढ़ता हूँ।
मैं गीतों में अपनी ग़ज़ल ढूँढ़ता हूँ।
है आँखों में कितना, वो जल ढूँढ़ता हूँ।।१।।
वो कागज़ की गेंदें, वो कपड़े की गुड़िया।
वो मेले की कुल्फी, वो चूरन की पुड़िया।
माँ का वो आँचल, वो पापा के कन्धे।
निर्द्वंद्व स्वर से गूंजे, वो अपने बरमदे।
मैं कदमों की अपनी पहल ढूँढ़ता हूँ।।३।।...........
वो पक्षी, वो बादल, वो बारिश का पानी,
वो गुजरे बचपन की मेरी कहानी।
वो चंपक का चीकू, वो मीना का तोता।
वो बारिश के जल में, कागज़ की नौका।
मैं गगनों में फिर वो गगन ढूँढ़ता हूँ।।४।।............
वो सर्दी की सिहरन, वो मधुमासी पुलकन।
वो बिखरी हुई सी पतझड़ की सिसकन।
मैं गर्मी में फिर वो तपन ढूँढ़ता हूँ।।५।।............
वो खोये जो बचपन के पल ढूँढ़ता हूँ।
मासूमियत से गुजरा, वो कल ढूँढ़ता हूँ।
बड़ी शान की ये मेरी जिंदगानी।
मैं फिर भी तो इसमें चुभन ढूँढ़ता हूँ।।६।।.........
रचनाकार-निखिल देवी शंकर वर्मा
कार्यरत- मौसम केंद्र, लखनऊ,
मैं फुर्सत के अपने दो पल ढूँढ़ता हूँ।
मैं गीतों में अपनी ग़ज़ल ढूँढ़ता हूँ।
है आँखों में कितना, वो जल ढूँढ़ता हूँ।।१।।
वो कागज़ की गेंदें, वो कपड़े की गुड़िया।
वो मेले की कुल्फी, वो चूरन की पुड़िया।
माँ का वो आँचल, वो पापा के कन्धे।
निर्द्वंद्व स्वर से गूंजे, वो अपने बरमदे।
मैं कदमों की अपनी पहल ढूँढ़ता हूँ।।३।।...........
वो पक्षी, वो बादल, वो बारिश का पानी,
वो गुजरे बचपन की मेरी कहानी।
वो चंपक का चीकू, वो मीना का तोता।
वो बारिश के जल में, कागज़ की नौका।
मैं गगनों में फिर वो गगन ढूँढ़ता हूँ।।४।।............
वो सर्दी की सिहरन, वो मधुमासी पुलकन।
वो बिखरी हुई सी पतझड़ की सिसकन।
मैं गर्मी में फिर वो तपन ढूँढ़ता हूँ।।५।।............
वो खोये जो बचपन के पल ढूँढ़ता हूँ।
मासूमियत से गुजरा, वो कल ढूँढ़ता हूँ।
बड़ी शान की ये मेरी जिंदगानी।
मैं फिर भी तो इसमें चुभन ढूँढ़ता हूँ।।६।।.........
रचनाकार-निखिल देवी शंकर वर्मा
कार्यरत- मौसम केंद्र, लखनऊ,
भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।
© Copy right 2018. All rights reserved.
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