फूलों काँटों की पहचान नहीं,
पथ तेरा वही, उड़ान नई।
पग-पग पर तेरे संकट हैं,
वो कायर, जो निष्कंटक हैं।।१।।
चट्टानों से टकराने दो।
उम्मीदों को बह जाने दो।
अंगार-कष्ट चिंगारी से,
नेतृत्व की क्षमता आने दो।।२।।
संघर्षपूर्ण इस जीवन को,
अपने नयनों से देखा है।
उत्थान-पतन के अंतर में,
विश्वास की गज भर रेखा है।।३।।
हो नवल दीप्ति, हो नव उजियार।
सुन विजय-पथ मेरी पुकार।
नेतृत्व तुम्हारा करने को,
तत्क्षण, तत्पर, मैं हूं तैयार।।४।।
विघ्नों के मुझको बादल दो।
मुझको अपने सब संकट दो।
अपने अरमानों की बगिया के,
उन फूलों में भी कंटक दो।।५।।
भव सारा तुझको है अर्पण।
मन मेरा तुझको है अर्पण।
स्वामित्व को स्वाहा कर अब तो,
मेरा तुझको है पूर्ण समर्पण।।६।।
आगाज़ में भी उन्माद नहीं।
हार-जीत में रार नहीं।
फूलों-शूलों के अंतर में,
मन मेरा वही, उड़ान नई।।७।।
रचनाकार-निखिल देवी शंकर वर्मा
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
© Copy right 2018
All rights reserved.
पथ तेरा वही, उड़ान नई।
पग-पग पर तेरे संकट हैं,
वो कायर, जो निष्कंटक हैं।।१।।
चट्टानों से टकराने दो।
उम्मीदों को बह जाने दो।
अंगार-कष्ट चिंगारी से,
नेतृत्व की क्षमता आने दो।।२।।
संघर्षपूर्ण इस जीवन को,
अपने नयनों से देखा है।
उत्थान-पतन के अंतर में,
विश्वास की गज भर रेखा है।।३।।
हो नवल दीप्ति, हो नव उजियार।
सुन विजय-पथ मेरी पुकार।
नेतृत्व तुम्हारा करने को,
तत्क्षण, तत्पर, मैं हूं तैयार।।४।।
विघ्नों के मुझको बादल दो।
मुझको अपने सब संकट दो।
अपने अरमानों की बगिया के,
उन फूलों में भी कंटक दो।।५।।
भव सारा तुझको है अर्पण।
मन मेरा तुझको है अर्पण।
स्वामित्व को स्वाहा कर अब तो,
मेरा तुझको है पूर्ण समर्पण।।६।।
आगाज़ में भी उन्माद नहीं।
हार-जीत में रार नहीं।
फूलों-शूलों के अंतर में,
मन मेरा वही, उड़ान नई।।७।।
रचनाकार-निखिल देवी शंकर वर्मा
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
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Very good bhai. ..
ReplyDeleteधन्यवाद,भाई!
ReplyDeleteNice poem
ReplyDeleteThanks, brother!☺
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