उरी हमले की प्रतिक्रिया में १९ सितंबर, २०१६ को रचित यह कविता लगातार हो रही हमारे सैनिकों की शहादत का प्रतिशोध लेने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ एक अंतिम और कठोरतम प्रहार की मांग पुनः दोहराती है।
हे मातृ भारती ओ! तेरी सेवा मेरी कुर्बानी।
तुम रक्त माँगती हो, देंगे शीश-ए-निशानी।।
"धन्ये वयम मातृभूमे, धन्ये च वीर सपूता:।।"
हे मातृभूमि के वीर सपूतों, बर्बाद न तेरी कुर्बानी होगी।
अब घर में घुसकर दुश्मन के, औकात दिखानी होगी।
ए शेर-ए-हिन्द साथियों, एक हुंकार लगानी होगी।
ध्वज गाड़ तिरंगा रणभूमि में, धरती तो हिलानी होगी।।१।।
संग्राम किया, जो निश्चित है, तो जग में एक ही कहानी होगी।
सीमा पार की धरती पर, लाल सिंधु एकमात्र निशानी होगी।
लाहौर,कराँची, पेशावर तक, बेशक दिल्ली पहुँचानी होगी।
सन ६५, ७१, और कारगिल की, याद दिलानी होगी।।२।।
वे धन्य वीर तो लड़कर, अपना फ़र्ज़ निभाकर चले गए।
मातृभूमि के जन-जन के हित, रक्त बहाकर चले गए।
हर सांस जीतकर लड़ना है, हमको सिखलाकर चले गए।
हर नयन झील सी भरकर वो, सबको तो रुलाकर चले गए।३।
इन जल से डूबी आंखों से, आंसू भी अब न बहते हैं।
क्या विधि भी यही विचार रही, कब तक रहते हम सहते हैं।
हे मातृभूमि प्रिय ! मैं आता हूं, तरुणों की रुदन पुकार सुनो।
तेरे वंदन को व्याकुल हूं, इन प्राणों को स्वीकार करो ।।४।।
तुम युद्ध करो, बस युद्ध करो, गंगा,माटी मस्तक की ढ़ाल बनेगी।
उद्घोष तुम्हारा जय का हो, पग-पग की अब से ताल कहेगी।
आज हमारी, रण में सेना, पाकिस्तान का काल बनेगी।
सिंधु नदी उस सीमा पार, कल के दिन से लाल बहेगी।।५।।
पाकिस्तान को भारतीय सेना तथा १३० करोड़ हिन्दुस्तानियों की चुनौती व चेतावनी :-
"हर दिन तेरा अब रण होगा, भारत भू-नभ मंडल विस्तार करेगा।
उस धरती का कण-कण भी, जय-जय हिन्दुस्तान कहेगा।।"
रचनाकार-निखिल देवी शंकर वर्मा,
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
© Copy right 2018
All rights reserved.
हे मातृ भारती ओ! तेरी सेवा मेरी कुर्बानी।
तुम रक्त माँगती हो, देंगे शीश-ए-निशानी।।
"धन्ये वयम मातृभूमे, धन्ये च वीर सपूता:।।"
हे मातृभूमि के वीर सपूतों, बर्बाद न तेरी कुर्बानी होगी।
अब घर में घुसकर दुश्मन के, औकात दिखानी होगी।
ए शेर-ए-हिन्द साथियों, एक हुंकार लगानी होगी।
ध्वज गाड़ तिरंगा रणभूमि में, धरती तो हिलानी होगी।।१।।
संग्राम किया, जो निश्चित है, तो जग में एक ही कहानी होगी।
सीमा पार की धरती पर, लाल सिंधु एकमात्र निशानी होगी।
लाहौर,कराँची, पेशावर तक, बेशक दिल्ली पहुँचानी होगी।
सन ६५, ७१, और कारगिल की, याद दिलानी होगी।।२।।
वे धन्य वीर तो लड़कर, अपना फ़र्ज़ निभाकर चले गए।
मातृभूमि के जन-जन के हित, रक्त बहाकर चले गए।
हर सांस जीतकर लड़ना है, हमको सिखलाकर चले गए।
हर नयन झील सी भरकर वो, सबको तो रुलाकर चले गए।३।
इन जल से डूबी आंखों से, आंसू भी अब न बहते हैं।
क्या विधि भी यही विचार रही, कब तक रहते हम सहते हैं।
हे मातृभूमि प्रिय ! मैं आता हूं, तरुणों की रुदन पुकार सुनो।
तेरे वंदन को व्याकुल हूं, इन प्राणों को स्वीकार करो ।।४।।
तुम युद्ध करो, बस युद्ध करो, गंगा,माटी मस्तक की ढ़ाल बनेगी।
उद्घोष तुम्हारा जय का हो, पग-पग की अब से ताल कहेगी।
आज हमारी, रण में सेना, पाकिस्तान का काल बनेगी।
सिंधु नदी उस सीमा पार, कल के दिन से लाल बहेगी।।५।।
पाकिस्तान को भारतीय सेना तथा १३० करोड़ हिन्दुस्तानियों की चुनौती व चेतावनी :-
"हर दिन तेरा अब रण होगा, भारत भू-नभ मंडल विस्तार करेगा।
उस धरती का कण-कण भी, जय-जय हिन्दुस्तान कहेगा।।"
रचनाकार-निखिल देवी शंकर वर्मा,
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
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✍️✍️✍️✍️👌👌👌👌🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ReplyDelete!!! Jai Hind !!! Jai Hind ki Sena!!!
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DeleteJai Hind !!! Jai Hind ki Sena!!!😊🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
DeleteKya baat hai bhai man me desh bahkti bhavana ke prati ek naya sanchar hua poem padh kar
ReplyDeleteDhanywad Dost !!!
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