-लहरों के स्वरों की झंकार
ज़मीं को मैं ज़मीं कह रहा हूंँ आज से,
कदम दर कदम चल रहा हूंँ नाप के।
जिन पंक्तियों को रच रहा था पल-पल सोचकर ,
उस कलम को रख रहा अब मैं आज से ।।
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