Wednesday, March 6, 2024

अनिर्णीत

छल करके कोई जीत सका है,

तप की उठती अंगारों से....?

मन-सागर में उठतीं लहरें,

कहतीं - "थम जा थोड़ा तूफ़ानों में"।।१।।


क्या जुगुनू जग जीत गए,

बदली से ढ़के सितारों से।

सूरज की शक्ति कहाँ तक है,

क्यों पूछ रहे अँधियारों से.....? ।।२।।


क्या  बाणों से चूक हुई..,

क्या चूक हुई संधानों में...?

कहाँ चूकवश हुई पराजय,

क्यों देखूँ परिणामों में.....?।।३।।


मैं आऊँगा वापस...एक दिन,

इसमें ना संदेह, सखे !

पर बेचैनी सी उलझन में।

क्यों गढ़ता यह परिवेश मुझे....?।।४।।


यह राजपाट, यह धन वैभव,

ना इसमें है अनुराग मुझे।

पर शक्ति एकत्रित करने को,

तपना ही होगा आज मुझे ।।५।।


रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र, लखनऊ 

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।

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