Friday, May 10, 2024

ख्वाबों का शहर - लखनऊ

गुलिस्तां गुलज़ार करता हूँ , शुक्रिया हर बार करता हूँ । 

पलकें बिछाकर इस्तिक़बाल में , मैं दुआ-सलाम करता हूँ ।

एक शाम गुज़ार कर देखिए यहाँ की‌ गलियों में ,

मैं 'लखनऊ' हूँ .....! वापस आने तलक़ इंतज़ार करता हूँ ।।१।।


यहाँ हर शख्स आँखों से , पूछता हाल-ए-दिल चुपके से ।

मगर तहज़ीब कुछ ऐसी ; कि जुबां से कह नहीं पाता ।

खताएँ हों किसी की भी , मगर खुद को परखता हूँ ।

अदब अपना मैं लेकर साथ , हर बार चलता हूँ ।

मैं 'लखनऊ' हूँ.....! वापस आने तलक इंतज़ार करता हूँ ।।२।।


खुले दिल को लिए बैठीं, अमीनाबाद की तंग गलियाँ।

चटोरी चौक के खस्ते, दिलकुशा बाग की कलियाँ ।

गज़क का स्वाद है रसता, लज़ीज टुंडे-कबाबी‌ है ।

दुपट्टे की सिलवटों पर, चिकनकारी नवाबी है ।।३।।


ग़ाफ़िलों को भुलैया में , इमामबाड़ा आवाज़ देता है। 

रेसिडेंसी का हर कमरा, ज़ंग-ए-आज़ादी संजोता है ।

रियासत से सियासत तक की, मंजिल का ठिकाना है ।

कथक का यह घराना है, ख़ुशनुमा लहज़ा पुराना है ।।४।।


तसव्वुर में रहेंगे हम, कोई अंदाज यह रख ले ...।

निशानी सब तुम्हारी हैं , निशाना बस हमारा है ।

हर उम्मीद और फरियाद की , मैं याद बुनता हूँ ।

मैं 'लखनऊ' हूँ.....! वापस आने तलक़ इंतज़ार करता हूँ ।।५।।


कोई अनजान बनकर रह जाए ;  तो फिर क्या 'नवाबी'......!

इश्क़ की सरज़मीं में ऐसी क्या उदासी,

हम अगर दिल में हैं ; फिर क्यों है मायूसी...?

है ख़ता कोई अगर ; तो बस ख़ामोशी ।

दिल के कुछ टुकड़े समेटे 'लखनऊ' आइए,

कुछ पल बिताइए ; थोड़ा मुस्कुराइए ।।६।।


रचनाकार- निखिल वर्मा  

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार 

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