Friday, May 17, 2024

चिड़िया

अग्नि तपन के इस मौसम में,

ढूँढ़ रही तुम कोलाहल ।

दाने-दाने को चुगने में,

बीत रहा तेरा प्रतिपल ।।१।।

 

ना भय-मुक्त गगन है अब,

ना पीने को शीतल जल ।

ना उड़ने को पंख पसरते,

ना पवन चले धीमी निर्मल ।।२।।


खुली चोंच में दाना अब ना,

ना फल-फूलों के वन-उपवन ।

कंठ सूखने के कारण ;

ना‌ होता अब वह मधुर गुंजन ।।३।।


इतनी पीड़ा देख तुम्हारी ,

जिजीविषा को रोता मन ।

फिर भी क्यों चाहूँ मैं पाना,

झुलसे पंख, कठिन जीवन  ।।४।।


कहीं विचरने को मिल जाए ।

मिल जाए कुछ खालीपन।

मुझको तेरा स्वर मिल जाए।

आह्लादित हो मेरा मन ।।५।।


रचनाकार - निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ, 

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।

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