Saturday, May 18, 2024

इस वीराने से रास्ते में,

मैं पैदल चलता जाता हूँ।

प्यास बुझाने को अपनी,

जल कुआँ खोदकर लाता हूँ।।


श्रम से बीत रहे जीवन में 

मैं कभी-कभी थक जाता हूँ ।

आसमान में देख सितारे,

नभ की नई कल्पना पाता हूँ ।।

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