-लहरों के स्वरों की झंकार
इस वीराने से रास्ते में,
मैं पैदल चलता जाता हूँ।
प्यास बुझाने को अपनी,
जल कुआँ खोदकर लाता हूँ।।
श्रम से बीत रहे जीवन में
मैं कभी-कभी थक जाता हूँ ।
आसमान में देख सितारे,
नभ की नई कल्पना पाता हूँ ।।
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