Friday, May 31, 2024

यायावर चातक

मैं चलता रहूँगा इस पथ पर,

यह साथ तुम्हारा हो न हो।

इस तपती हुई दोपहरी में,

बरसात कहीं पर हो न हो ।।१।।


सदियों से समेटे कुछ पल को,

यह साँझ दोबारा हो न हो।

वह याद बहुत मुस्काती है,

कुछ बात दोबारा हो न हो  ।।२।।


मैं धीमे चलता हूँ अक्सर,

कदमों की आहट हो न हो।

धड़कन बढ़ती कुछ बातों में, 

थोड़ी घबराहट हो न हो  ।।३।।


कुछ रुकता हूँ, कुछ चलता हूँ ।

गति मेरी निरन्तर हो न हो।

कुछ‌‌ कहता हूँ, कुछ सुनता हूँ।

वचनों का अंतर हो न हो ।।४।।


मैं कोशिश करता हँसने की,

मुस्कान तुम्हारी कम न हो।

दुख हो कितना, लेकिन फिर भी, 

ये आँख दोबारा नम न हो ।।५।।


रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत - मौसम केंद्र, लखनऊ

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार

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