Sunday, April 8, 2018

भरतवंशियों की तपोआरती

हे चक्रपाणि, करुणानिधि, माधव, मनमोहन, हे गिरिधर।
हे मधुर छवि के श्याम मनोहर, कृष्ण, प्रभो मुरलीधर।
हे दयासिंधु, हे जगतपिता, हे प्रतिपालक नंद-नंदन ।
करबद्ध खड़े राधारमण; हम करते तेरा वंदन।।१।।

मार्तण्ड दीप्ति सी अविकीर्णित हो, आर्यावर्त कान्ति मनोहर।
स्वेद-सिंचित हो मरुभूमि, लहराये शस्य-श्यामला सुन्दर।
गहराई सिंधु-सी गहरी हो, ऊँचा हो शीश गगन-सा।
कुसुम धरा पर हो विकसित, भारतभूमि के चमन का।।२।।

समरक्षेत्र में युद्ध रहे, हर जीत हमारी आशा हो।
संघर्ष रहे जीवन-पर्यन्त, हम वीरों की ये परिभाषा हो।
पुष्प चमन के हों मुखरित‌, मातृभूमि आबाद करें।
रणभेरी नभ में भारत की, प्रतिक्षण विजयों का नाद करें।।३।।

हे प्रभु! हमारे तरुणों की, हर विनती तुम स्वीकार करो।
वक्ष हिमालय-सा विस्तृत हो, हम सब में ऐसा भाव भरो।
हे कान्हा! अपनी चरण-धूलि को; मेरे मस्तक के नाम करो।
तेज,पराक्रम,सद्-बुद्धि,दया; उर में मेरे सद्-भाव भरो।।४।।

रचनाकार-निखिल देवी शंकर वर्मा
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ।
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