Wednesday, February 14, 2024

समापन

ज़मीं को मैं ज़मीं कह रहा हूंँ आज से,

कदम दर कदम चल रहा हूंँ नाप के।

जिन पंक्तियों को रच रहा था पल-पल सोचकर ,

उस कलम को रख रहा अब मैं आज से ।।

समरक्षेत्र

जब‌ कुछ भी समझ न आए ; 

और रोने को दिल चाहे।

जब अंतर्मन की बांह कचोटे, 

मन अपना घबराए ‌।। १।।


जब भंवर उठे सागर सी,

और साँसें उखड़ी जाएं।

उठती हुई निनादों में,

जब स्वर अपना खो जाए ।।२।।


जब बेचैनी व उलझन हो,

और दुविधा में पड़ जाएं।

शस्त्र विहीन भले हों, पर; 

लड़ने को जी चाहे।।३।।


अंतर को अपने, मौन रखो तब ;

पर्वत-सा अविचल होकर ।

कलम उठाकर रच दो खुद को,

फिर से दृढ़ प्रतिज्ञा लेकर।।४।।


उठो, चलो और कदम बढ़ाओ,

अपनी राहें स्वयं बना लो।

समरक्षेत्र को जाने वाले , 

हर पथ को तुम, फिर से अपना लो ।।४।।


रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग

Copyright ©️ 2024

All rights reserved.


.....Love beyond the Taj !


Is it mere attraction?
Or sweetest ever affection.
Battling against the force of nature,
He came out with flying colours.

Each drop of sweat; when falling down,
Just want some toiling more.
The hits of hammer, no way glamour,
Sounds like Lion's roar.

He took a chisel, with a hammer,
Went to pull down stars.
The royals bow their heads in regard,
When the real king appeared in scars.

Can it be only; dark way lonely...?
An Ant can lift bulky stones...?
Was though much stronger; a rock of iron,
But, not more than the man of bones.

Was there some wonder, or loud thunder...?
That cracked the mountain's breast.
For finding the present for his beloved,
Twenty-two years of long quest.

How long a sane, keep himself ignite,
And how much.........,how he can?
To break a massif of 20 feet height!
No wonder, was a 'MOUNTAIN MAN'.



Poet: Nikhil Verma, 
Meteorological Centre, Lucknow 
IMD, MOES, GOI
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Thursday, February 8, 2024

मैं लिखता हूँ

किसी दरिया के पानी को भी, मैं आग लिखता हूँ।

कलम की कुछ खता तो है, मगर जज़्बात लिखता हूँ।

थोड़ा-बहुत तो ठीक है पर , मैं बेहिसाब लिखता हूँ।

तुम इश्क कहते हो जिसे, मैं इंकलाब लिखता हूँ।।

Saturday, February 3, 2024

डॉ नौटियाल - एक व्यक्तित्व

परिचय कराते आपसे, एक व्यक्तित्व जो है बेमिसाल।

सरल भाषा; में सहजता से समझाते; विज्ञान के जो हैं कमाल ।

बहुमुखी प्रतिभा धनी, हर क्षेत्र में उनकी मिसाल।

सौम्य, शील व मधुर जो हैं ; वो हमारे डॉ नौटियाल।।१।।


ज्ञान उनको खोजता है, खुद का कुछ भंडार भरकर । 

छाँटता फिर धुंध भ्रम की, कालिमा को दूर करता।

देखता दीपक उधर है जब, कुछ नया प्रकाश लेकर ।

चीरता है तमस को, और नया उजियार करता ।।२।।


संगीत से है प्रेम उनका, कला के वो श्रेष्ठ ज्ञाता।

प्रकृति से है नेह उनका, पुष्प से वो मुस्कुराते।

रत्न हैं नायाब वो एक , हर तरफ बिखरी, उनकी रोशनी है।

हम साथ के पत्थर हैं, थोड़ी चमक ले टिमटिमाते।।३।।


माँ शारदे की अनुपम कृपा; उन पर बरसती है सदा ।

हम तो उनके ज्ञान का, एक अंश पाकर खुश हुए।

जो मिले हमको कभी , सानिध्य थोड़ा आपका,

कुछ बड़ा हम भी करें, और नाम कर दें आपका ।।४।।


रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत- भारत मौसम विज्ञान विभाग, 

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार।

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