Friday, August 23, 2024

हम शुतुरमुर्ग

विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय सिर्फ डिग्री / प्रमाणपत्र बाँटने की संस्था बनकर रह गए हैं। ज्वलंत व सामाजिक मुद्दों पर कहीं बहस नहीं होती। सब बंद हो गई है। सब को लगता है कि मैं ठीक हूँ / मैं बच गया / गई....सब ठीक हो गया । शुतुरमुर्ग की तरह हम आँख मूंदकर , सिर छिपाकर बैठे हैं।

समस्या की जड़ पर चर्चा नहीं होगी, उसके कारण और निवारण पर विवेचना नहीं होगी और हमें अगर लगता है कि मात्र आपराधिक न्याय प्रणाली को दोषी ठहरा कर समस्या का निवारण हो जाएगा....तो माफ़ कीजिएगा हम सब मूर्ख हैं । हम स्वयं को शिक्षित कहते हैं.....पर हम इकट्ठा नहीं हो पाते, हम आंदोलित नहीं हो पाते....हम चर्चा नहीं कर पाते ।

क्यों.....?

क्योंकि हम डरते हैं और शिक्षा डरना नहीं सिखाती । अतः, हम अशिक्षित भी हैं। 

यदि आने वाले समय में ऐसा ही चलता रहा तो यकीनन भविष्य भयावह होगा । चर्चा कीजिए..... विशेषकर महिलाएँ और लड़कियाँ..... अपने घर में, परिवार में, विद्यालय में, महाविद्यालय में... कार्यालय में.....भाई से, पिता से, बहन से, माँ से, मित्रों से, वरिष्ठजनों से... लड़कों से, लड़कियों से.... सहकर्मियों से ।

सामाजिक विषयों पर चर्चा इतनी कठिन क्यों है?....

शर्म आती है ...हिचक होती है....... क्योंकि हम डरते हैं.... डरते हैं कि कोई क्या सोचेगा? ज़रा सोचिए कि उन विषयों के बारे में सोच कर डर रहे हैं तो जो पीड़ित हैं उनका हाल कैसा होगा? 

मत डरिए.... थोड़ी सी कोशिश कर लीजिए....समाज अपने आप सँभल जाएगा । 

यदि बेहतर संसार चाहते हो....तो 

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे...!

कहीं सुना था...

"एक नन्हा सा दीया, बेहतर है अँधेरे से ।

एक नए पथ का निर्माण करना है...... उजाले की ओर ।"


इसके बाद भी डर लगता है तो मैं लिख देता हूँ उस सामाजिक विषय को जो अभी चर्चा योग्य हैं ।

 महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध: रेप / दुष्कर्म /  छेड़छाड़ /हत्या आदि।


 





2 comments:

  1. आज के समाज के हकीकत यही है ।

    लोग पता नहीं कहां व्यस्त हैं शायद मनुष्य अब मनुष्य नहीं रहा गया बल्कि वो इंसान बनता जा रहा है।

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