Friday, May 31, 2024

यायावर चातक

मैं चलता रहूँगा इस पथ पर,

यह साथ तुम्हारा हो न हो।

इस तपती हुई दोपहरी में,

बरसात कहीं पर हो न हो ।।१।।


सदियों से समेटे कुछ पल को,

यह साँझ दोबारा हो न हो।

वह याद बहुत मुस्काती है,

कुछ बात दोबारा हो न हो  ।।२।।


मैं धीमे चलता हूँ अक्सर,

कदमों की आहट हो न हो।

धड़कन बढ़ती कुछ बातों में, 

थोड़ी घबराहट हो न हो  ।।३।।


कुछ रुकता हूँ, कुछ चलता हूँ ।

गति मेरी निरन्तर हो न हो।

कुछ‌‌ कहता हूँ, कुछ सुनता हूँ।

वचनों का अंतर हो न हो ।।४।।


मैं कोशिश करता हँसने की,

मुस्कान तुम्हारी कम न हो।

दुख हो कितना, लेकिन फिर भी, 

ये आँख दोबारा नम न हो ।।५।।


रचनाकार -निखिल वर्मा

कार्यरत - मौसम केंद्र, लखनऊ

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार

Copyright ©️ 2024. All rights reserved.

Saturday, May 18, 2024

इस वीराने से रास्ते में,

मैं पैदल चलता जाता हूँ।

प्यास बुझाने को अपनी,

जल कुआँ खोदकर लाता हूँ।।


श्रम से बीत रहे जीवन में 

मैं कभी-कभी थक जाता हूँ ।

आसमान में देख सितारे,

नभ की नई कल्पना पाता हूँ ।।

Friday, May 17, 2024

चिड़िया

अग्नि तपन के इस मौसम में,

ढूँढ़ रही तुम कोलाहल ।

दाने-दाने को चुगने में,

बीत रहा तेरा प्रतिपल ।।१।।

 

ना भय-मुक्त गगन है अब,

ना पीने को शीतल जल ।

ना उड़ने को पंख पसरते,

ना पवन चले धीमी निर्मल ।।२।।


खुली चोंच में दाना अब ना,

ना फल-फूलों के वन-उपवन ।

कंठ सूखने के कारण ;

ना‌ होता अब वह मधुर गुंजन ।।३।।


इतनी पीड़ा देख तुम्हारी ,

जिजीविषा को रोता मन ।

फिर भी क्यों चाहूँ मैं पाना,

झुलसे पंख, कठिन जीवन  ।।४।।


कहीं विचरने को मिल जाए ।

मिल जाए कुछ खालीपन।

मुझको तेरा स्वर मिल जाए।

आह्लादित हो मेरा मन ।।५।।


रचनाकार - निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ, 

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार।

Copyright ©️ 2024. All rights reserved.

Friday, May 10, 2024

ख्वाबों का शहर - लखनऊ

गुलिस्तां गुलज़ार करता हूँ , शुक्रिया हर बार करता हूँ । 

पलकें बिछाकर इस्तिक़बाल में , मैं दुआ-सलाम करता हूँ ।

एक शाम गुज़ार कर देखिए यहाँ की‌ गलियों में ,

मैं 'लखनऊ' हूँ .....! वापस आने तलक़ इंतज़ार करता हूँ ।।१।।


यहाँ हर शख्स आँखों से , पूछता हाल-ए-दिल चुपके से ।

मगर तहज़ीब कुछ ऐसी ; कि जुबां से कह नहीं पाता ।

खताएँ हों किसी की भी , मगर खुद को परखता हूँ ।

अदब अपना मैं लेकर साथ , हर बार चलता हूँ ।

मैं 'लखनऊ' हूँ.....! वापस आने तलक इंतज़ार करता हूँ ।।२।।


खुले दिल को लिए बैठीं, अमीनाबाद की तंग गलियाँ।

चटोरी चौक के खस्ते, दिलकुशा बाग की कलियाँ ।

गज़क का स्वाद है रसता, लज़ीज टुंडे-कबाबी‌ है ।

दुपट्टे की सिलवटों पर, चिकनकारी नवाबी है ।।३।।


ग़ाफ़िलों को भुलैया में , इमामबाड़ा आवाज़ देता है। 

रेसिडेंसी का हर कमरा, ज़ंग-ए-आज़ादी संजोता है ।

रियासत से सियासत तक की, मंजिल का ठिकाना है ।

कथक का यह घराना है, ख़ुशनुमा लहज़ा पुराना है ।।४।।


तसव्वुर में रहेंगे हम, कोई अंदाज यह रख ले ...।

निशानी सब तुम्हारी हैं , निशाना बस हमारा है ।

हर उम्मीद और फरियाद की , मैं याद बुनता हूँ ।

मैं 'लखनऊ' हूँ.....! वापस आने तलक़ इंतज़ार करता हूँ ।।५।।


कोई अनजान बनकर रह जाए ;  तो फिर क्या 'नवाबी'......!

इश्क़ की सरज़मीं में ऐसी क्या उदासी,

हम अगर दिल में हैं ; फिर क्यों है मायूसी...?

है ख़ता कोई अगर ; तो बस ख़ामोशी ।

दिल के कुछ टुकड़े समेटे 'लखनऊ' आइए,

कुछ पल बिताइए ; थोड़ा मुस्कुराइए ।।६।।


रचनाकार- निखिल वर्मा  

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार 

Copyright ©️ 2024. All rights reserved.





Monday, May 6, 2024

कुछ

कुछ तुम देख रहे आँखों में,

कुछ धुँधला-सा एक सपना ।

कुछ देखा मैंने अंतर में,

दूर हुआ कोई अपना ।

कुछ स्वर है जो गूँज रहा ।

कुछ आवाज़ों का मंज़र है।

कुछ टपक रही बूँदों से,

कुछ भ्रम का एक समंदर है ।

कुछ भीड़ भरी है इस दिल में।

कुछ मुँह मोड़े तन्हाई है ।

कुछ आँखों में है नींद बसी,

कुछ करवट ली अँगड़ाई है।

कुछ बगिया में हैं फूल खिले,

कुछ मुस्कानें हैं उपवन की ।

कुछ साँसों की गहराई में ,

कुछ रुकती-चलती धड़कन की ।

मैंने देखा और बहुत कुछ...!

जो शून्य तलक जाता दिखता।

अँधेरे में दूर खड़ा ;

कोई मुझे बुलाता दिखता ।

इतने अंदर-बाहर में जब,

कुछ न हो ............. फिर भी कुछ तो है  !  


रचनाकार- निखिल वर्मा

कार्यरत- मौसम केंद्र लखनऊ 

भारत मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार ।

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Saturday, May 4, 2024

समर्पण

नीली छतरी के रखवाले ;

हम सबके तुम पालनहारे।

अगर सौंप दूँ , मैं तुमको ;

हृदयभाव की कुंजी अपनी।

तो क्या तुम आश्वस्त करोगे...?

मन से मेरे ; छल न‌ करोगे....?

निश्छलता के मोती लेकर.....

कपट की माला में न पिरोओगे...?।।१।।


सुना बहुत है तुमको लेकर,

बहुत परखते पल-पल सबको ।

आज तुम्हें मैं परखूँगा ।

तब जाकर सब सौंपूँगा ।

गुण थोड़े जो ; वो भी तुम्हारे,

मेरे सारे दोष तुम्हारे ।

पुण्य दिए ; गर जो कुछ हैं भी,

मेरे सारे पाप तुम्हारे ।

रहम तुम्हारा, वहम तुम्हारा ।

मेरा सारा अहम् तुम्हारा ।।२।।


सतत प्रतीक्षा, सकल समीक्षा;

हर पल होती हुई परीक्षा,

में लेकर कोरा कागज़ बैठा अक्सर,

मैं अब भ्रम-जालों से दूर रहूँगा ।

जो कुछ था मेरा ; अब से वह,

करता हूँ बस तुम्हें समर्पित।

मेरे भोले-मन की चंचलता,

को आकर अब करो नियंत्रित ।।३।।


रचनाकार- निखिल वर्मा

मौसम केंद्र, लखनऊ

भारत मौसम विज्ञान विभाग ।

Copyright ©️ 2024. All rights reserved.